श्रीमद् भागवत कथा द्वितीय स्कंध आरंभ

श्रीमद् भागवत कथा द्वितीय स्कंध  आठवां अध्याय आरंभ

राजा परीक्षित द्वारा श्री सुखदेव जी से धर्म वेद एवं ज्ञान की बातें पूछना ब्रह्मा जी से हरि के अवतारों का वर्णन सुनने के पश्चात नारायण नारायण कहते हुए एवं वीणा बजाते हुए नेहरा जी वहां से प्रस्थान कर गए इतनी कथा श्री सुखदेव जी के मुख से सुनने के पश्चात राजा परीक्षित हरि के और गुणों को जानने की इच्छा का लोग श्रवण संतोष ना कर सके अन्यथा सुखदेव जी से विनती करके बोले हैं महात्मा आपने नारायण के विराट रूप और वर्णन करके मेरे जैसे पापी का मन पवित्र कर दिया अब आप कृपा करके कोई ऐसा उद्देश दें जिससे सुनकर मैं अपने समस्त बातो को भूलकर प्रभु की भक्ति में लीन होकर अपने नश्वर शरीर का त्याग कर शकुन ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि जीवन का संबंध पांच तत्वों से ना होते हुए भी पांच तत्वों से बना है पंचतत्व श्रीति जल पावक गगन और समीर भगवान ने अपनी नाभि से निकले हुए कमल पर ब्रह्मा जी की उत्पत्ति की आपके कथा अनुसार प्रभु ने लोकपाल ओं की उत्पत्ति की और स्वयं भी लोकपाल के रूप में अवतार लिए इसका अर्थ विस्तार से समझने की कृपा करें एवं जियो की आयु का क्या परिणाम है तथा काल की सूचना एवं स्थूल गति का क्या है योनि कितने प्रकार की होती है प्राणियों की उत्पत्ति किस प्रकार की होती है एवं वार्ड आश्रम के भेद से लेकर युगधर्म तत्व एवं अध्यात्म आयोग को समझा कर बताएं जिससे मुझे मुक्ति मिल सके जो प्राणी प्रलय काल में लीन हो जाते हैं उनकी उत्पत्ति पुनः कैसे होती है आत्मा का क्या रूप है यह महात्मा आप मुझसे परमेश्वर की कथा सुनाएं वह कथा जिससे आत्मा शांत हो और प्रभु के चरणों की प्रति बड़े तब श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित आप स्वयं ज्ञानी पुरुष हैं फिर भी आप पूछते हैं तो मैं आपको प्रभु की महिमा अवश्य सुनाऊंगा यह कहते हुए श्री सुखदेव जी राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत की कथा सुनाते हुए बोले हे राजन जिओ की उत्पत्ति करने का कारण केवल प्रभु जानते हैं अथवा उनसे प्रीति करने वाला प्राणी हुए जीवो को इसलिए उत्पन्न करते हैं कि उनके बीच अपनी लीलाएं प्रगट कर उनके मन में बसे कलुषित भाव को निकालकर सन्मार्ग दे संसार में जीवो को उत्पन्न करके अंततोगत्वा अपने मेल विलीन कर लेते हैं यूपी से लेकर विशालकाय हाथी उन्हीं की देन है अतः मनुष्य को चाहे कि किसी भी प्राणी को कष्ट ना पहुंचाएं यदि उसे किसी जीव को कष्ट दिया तो प्रभु को कष्ट होगा ठीक उसी प्रकार जैसे हाथ में पांच उंगली होती है किंतु उसमें से किसी भी उंगली पर चोट लग जाए पीड़ा दिल को दिल को होती है इस प्रकार विधिवत प्रकार के उद्घाटन से श्री सुखदेव जी ने राजा परीक्षित को समझाया उनकी कामना शंकाओं का निराकरण किया

TRANSLATE IN ENGLISH 

Shrimad Bhagwat Katha Second Wing Eighth Chapter Beginning

King Parikshit asking Shri Sukhdev ji about religion, Vedas and knowledge, after hearing the description of Hari's incarnations from Brahma ji, saying Narayan Narayan and playing the Veena, Nehra left from there to hear this story from the mouth of Shri Sukhdev ji. After this, people could not be satisfied with listening to the desire to know more qualities of King Parikshit Hari, otherwise by requesting Sukhdev ji, Mahatma you have purified the mind of a sinner like me by describing and describing the vast form of Narayan. By listening to which I forget all my things and renounce my mortal body and renounce my mortal body, the wise men say that life is not related to five elements, but five elements are made of five elements, Panchatattva Sriti Jal Pavak, Gagan and Sameer Bhagwan. According to your story of the origin of Brahma ji on the lotus emerging from his navel, Lord created the Lokpals and himself incarnated as Lokpal, please understand in detail its meaning and what is the result of the age of Jio and the time. What is the information and gross motion of the vagina, how many types What is the nature of the origin of beings and from the distinction of Ward Ashram to Yuga Dharma Tattva and Spiritual Commission, explain to me so that I can get salvation What form is this Mahatma, you should tell me the story of God, that story by which the soul becomes calm and towards the feet of the Lord, then Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, you yourself are a wise man, yet if you ask, I will definitely tell you the glory of the Lord. Saying this, Shri Sukhdev ji, while narrating the story of Shrimad Bhagwat to King Parikshit, said, O king, only the Lord knows the reason for the origin of the living beings, or the creature who loves him creates the living beings because by revealing his pastimes among them, his mind By removing the tainted spirit settled in me and giving a path, by generating the creatures in the world, they eventually merge their unions, from UP to giant elephants are their gift, so human beings should not hurt any creature, if they give trouble to any creature. Lord will suffer Just like there are five fingers in the hand, but if any of the fingers are hurt, the pain is to the heart. 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ