श्रीमद्भागवत पुराण कथा द्वितीय स्कंध आरंभ

श्रीमद्भागवत पुराण द्वितीय स्कंध आरंभ सातवां अध्याय

श्री नारायण के 24 अवतारों का वर्णन प्रभु के 24 अवतारों का कारण सहित वर्णन करते हुए ब्रह्माजी बोले हे पुत्र महाराज हिलसा नामक महाबल साली दैत्य ने पृथ्वी को ब्रह्मांड से अलग करके समस्त पृथ्वी को लेकर रस ताल में चला गया था जहां जल ही जल था तब प्रभु श्री हरि ने वारा अवतार लेकर हीर साक्ष का संघार किया और पृथ्वी को अपने दांतों लंबे दांतों से उठाकर वापस ले आए दूसरे अवतार में आकृति नामक की स्त्री के गर्भ से सुयोग्य नाम से उत्पन्न हुआ और दक्षिण नामक स्त्री से बहुत से देवताओं को प्रगट कराकर देवताओं का दुखहरण किया जिस कारण से उनका नाम हरि पड़ा तीसरे अवतार कपिल के रूप में हुआ और अपनी माता श्री को साक्ष्य योग्य का उपदेश दिया आपने चौथे अवतार में महर्षि आश्रित की पत्नी अनुसूया से अवतरित होकर नाम से पृथ्वी पर भ्रमण किया उन्होंने यदु एवं सहस्त्रार्जुन को योग का उपदेश दिया फिर अगले अवतार में मेरे तब से प्रसन्न होकर मेरे चारों पुत्र का रूप धारण कर प्रभु ने मुझे कृतार्थ करते हुए मेरी नाक से अवतार लिया जिससे उनका नाम सनक संत सनातन कुमार एवं सनत पड़ा अपने उद्देश के प्रलय काल में ज्ञान को भूल चुके ऋषि यों को ज्ञान का उपदेश दिया और अपने आठवें अवतार में राजा दक्ष प्रजापति की कन्या पुत्री के गर्भ से नर नारायण के रूप में अवतार लिया और कठिन तप किया साथ में अवतार को लेने का कारण राजा उत्पाद की पुत्रवधू को दर्शन देना था आठवें अवतार की कथा निराली है महा पापी अधर्मी राजा व्हेन को ब्रह्मांड ब्राह्मणों ने मिलकर मंथन किया और उसी समय उसके शरीर से पृथ्वी नामक धारण करके प्रभु श्री हरि प्रगट हुए विनवे अवतार में राजा नाभि की एक पत्नी सुदेव के गर्भ से जन्म लेकर मूर्ख मनुष्यों को ज्ञान का उपदेश दीया हाय ग्रीन भगवान के रूप में लीलाधारी का दशम अवतार हुआ उसकी श्वास नली से देववाणी स्कूटी एवं ग्यारहवें अवतार में राजा परीक्षित सत्यव्रत एवं सत्य वर्षों का प्रलय काल के समय मत्स्य मछली का रूप धारण कर उनके नौका को चलाते हुए और बारहवीं अवतार में कछुआ का रूप धारण कर समुद्र मंथन के समय मनी के रूप में प्रयुक्त मत डाल चल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया और हरियाण कश्यप नामक दैत्य से भक्तों पहलाद की रक्षा करने के लिए अपना 13वां अवतार नरसिंह के रूप में लेकर हिरण्यकश्यप का वध करके भक्तों की रक्षा की 14 अवतार गजराज को ग्राहक से मुक्त करने के लिए और 15 में अवतार में राजा बलि द्वारा हारकर पलायन कर चुके इंद्र को उनका राज्य वापस लाने के लिए वामन रूप धारण करके राजा बलि से तीन पग जमीन दान में मांग कर संपूर्ण जगत को नाप दिया और हे पुत्र नारद प्रभु ने मां का रूप धारण कर तुम्हें ज्ञान का उपदेश दिया यह प्रभु का 16 अवतार हुआ उनके बाद प्रभु ने धनवंतरी का अवतार लेकर आयुर्वेद की रचना की फिर परशुराम के रूप में अवतार लेकर 21वीं बार क्षत्रियों का नाश किया और त्रेता युग में पुरुषोत्तम राम बनकर अभिमानी रावण सहित समस्त राक्षसों का संहार किया 21वीं अवतार में वेदव्यास जी का रूप धारण किए हुए एवं 22 में अवतार में अपनी समस्त कलाओं से युक्त होकर प्रभु ने देवकी मां की कोख से जन्म लिया तथा कौरव एवं पांडवों को महाभारत का युद्ध कर आया जरा संघ कालिया वन एवं कंस जैसे पापियों का नाश करके उनके चरित्र किए और 23 वें जन्म में बुध प्रभु के रूप में प्रकट होकर यज्ञ कर रहे राक्षसों का मान यज्ञ करने से हटाया जिससे राक्षसों की शक्ति छेड़ हुई और देवता विजई हुए और अब काली युग के अंत में जब पृथ्वी पहाड़ में धंसने लगी पापियों का सर्वत्र राज हो गया तब कालिका नामक से अवतार लेगी उनके हाथों से तलवार होगी नीली रंग के घोड़े पर सवार होकर अत्याचारों का नाश करके पुनः धर्म की स्थापना करें हे नारद जितना ज्ञान मेरे पास था प्रभु को अब तक मैं जितना जान सका हूं उतना तुमसे बतलाया ज्ञानी पुरुषों को प्रभु के 24 अवतार का वर्णन अवश्य सुनाया चाहिए उनकी अनंत माया को कोई जान ना सका है किंतु संसार को उत्पन्न करने वाले प्रभु अपने भक्तों का ध्यान सदा सर्वदा करते आए हैं और जो मनुष्य मन कर्म एवं भोजन से उनका ध्यान करेगा उसे भक्त कौशल्य प्रभु निश्चित रूप से भव पार करेगा

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Shrimad Bhagwat Purana Second Wing Begins Seventh Chapter

Describing the 24 incarnations of Shri Narayan along with the reason for the 24 incarnations of Lord Brahma, Brahma said, O son Maharaja, a great sister-in-law named Hilsa, separated the earth from the universe and took the whole earth and went to Ras Taal where water was the only water. Lord Shri Hari took the Vara incarnation and fought with Heer Saksha and brought the earth back with his long teeth. In the second incarnation, Aakriti was born from the womb of a woman with a suitable name and from a woman named Dakshina, many gods were revealed. Harassed the gods, due to which he was named Hari, the third incarnation was in the form of Kapil and preached the evidence worthy to his mother Shri. Then in the next incarnation, after being pleased with me, taking the form of my four sons, God blessed me and incarnated through my nose, due to which he was named Sanak Sant Sanatan Kumar and Sanat. the forgotten sage He preached knowledge and in his eighth incarnation incarnated as Nar Narayan from the womb of the daughter of King Daksha Prajapati and did hard penance. The Brahmans churned together the great sinner, the unrighteous king, and at the same time, taking the name of the earth from his body, Lord Shri Hari appeared in the Vinve Avatar, taking birth from the womb of Sudev, a wife of King's navel, preached knowledge to foolish men. The tenth incarnation of Leeladhari in the form of a god came from his breathing tube and in the eleventh incarnation, King Parikshit took the form of a fish during the catastrophe of Satyavrat and Satya years, driving his boat and taking the form of a tortoise in the twelfth incarnation. At the time of churning of the ocean, don't put it in the form of money, put the mountain on his back and protect the devotees from the demon named Haryan Kashyap by taking his 13th incarnation as Narasimha and saved the devotees by killing Hiranyakashipu. Gajraj from customer In order to liberate Indra, who had escaped after being defeated by King Bali in 15 incarnation, assumed the form of Vamana and asked King Bali to donate three steps of land and measured the whole world, O son Narada Prabhu. He taught you knowledge by taking the form of God, it was the 16th incarnation of the Lord, after that the Lord created Ayurveda by taking the incarnation of Dhanvantari, then incarnated as Parashurama and destroyed the Kshatriyas for the 21st time and became Purushottam Ram in Treta Yuga along with the arrogant Ravana. Destroyed all the demons, taking the form of Ved Vyas ji in the 21st incarnation and in the 22nd incarnation, the Lord took birth from the womb of Devaki's mother and fought the battle of Mahabharata to the Kauravas and the Pandavas. By destroying the sinners like Kansa, and by appearing as Lord Mercury in the 23rd birth, removed the values ​​of the demons performing the yajna from performing the sacrifice, which broke the power of the demons and the gods were victorious and now at the end of Kali Yuga when the earth The sinners who started sinking in the mountain became the rule everywhere. Will take incarnation by the name of Kama, will have a sword from his hands, ride on a blue colored horse, destroy the atrocities and establish religion again, O Narad, as much as the knowledge I had of the Lord, I have told you as much as I have been able to know the wise men of the Lord. The description of 24 incarnations must be narrated, no one has been able to know his infinite Maya, but the Lord who created the world has always been meditating on his devotees and the person who will meditate on them with mind, action and food, surely the devotee Kaushalya Prabhu. will cross 


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