ब्रह्माजी द्वारा प्रभु के विराट रूप का वर्णन ब्रह्माजी बोले हैं नारद जिसकी प्रेरणा से पृथ्वी स्थिर हुई है वह विराट स्वरूप वाले प्रभु के हजार हाथ हजार पर हजार नाक कान एवं हजार मस्तक हैं विराट रूप प्रभु के मुख से अग्नि एवं भुजाओं से सातों छन प्रगट हुए जो इस रूप में जाने जाते हैं गायत्री त्रिपुर 1 फुट डस्टिंग वृद्धि जागृति तथा पनती वंदन प्रधान करने वाले वरुण देव जिनकी जहां से अ वितरित हुए उसके नाश्ता छिद्रों से वायु की उत्पत्ति हुई वृक्षा आदि प्रभु के शरीर के अंगों से कान से दसों दिशाओं एवं पेट से समुद्र उत्पन्न हुआ आंखों से सूर्य शरीर की हड्डी से पर्वत पहाड़ एवं पथरीली वस्तु शरीर की नसों से नदियों का उत्थान हुआ हे नारद ब्रह्माजी नारद को संबोधित करके बोले भुजाओं से इंद्रदेव नाक से दोनों अश्वनी कुमार प्रकट हुए और नाक से ही विश्व की समस्त सुगंध यों का आगमन हुआ पलकों के उठने एवं गिरने की प्रक्रिया से रात्रि और दिन का निर्माण हुआ प्रभु ने जी हां को समस्त संसार के स्वाद के स्वरूप में और आंखों को लालच एवं लज्जा के रूप में बनाया नीचे का ऑटो लालच ऊपर का ऑटो लज्जा दातों को यमराज हंसी को माया धर्म के रूप में जाति एवं धर्म के रूप में पीठ प्रभु के सिर के बाल में है जो पैर समस्त सृष्टि काजल यश अपयश अनिल आप सब कुछ प्रभु की माया के रूप है संसार में जो कुछ भी होता है सब में उनकी इच्छा सम्मिलित होती है चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन हे नारद प्रभु श्री नारायण की आज्ञा पाकर मैंने सृष्टि के निर्माण हेतु दक्ष को अवतरित किया और उन्हें मानव रूप का निर्माण करने की आज्ञा दी प्रभु के स्मरण से सृष्टि रचना की समस्त मुझे प्राप्त हुई प्रभु की कृष्णा जी आदि अनंत हैं एक उनका ही नाम सच्चा है सांसारिक जीवन को भाव से पार उतारने के लिए उन्हें 24 बार अवतार लिया अतः मनुष्य को उनकी लीलाओं का स्मरण करना चाहिए जिससे मन को वास्तविक शांति मिले एवं पवित्रता की भावना जागृत हो और आवागमन रूपी कष्ट से मुक्ति पाकर भवसागर से पार हो जाए हे नारद जनलोक तब लोग एवं सत्य लोग में समय हंसी लोगों का निवास होता है संसारी प्राणियों के लिए भगवान श्री हरि ने दो मार्ग बताए हैं एकता का काम कर्मयोग दूसरा निष्काम कर्मयोग इन दोनों मार्गों में से एक मार्ग अपनाकर भी मानव मुक्ति पा सकता है जब मैं प्रभु के नाभि कमल से उत्पन्न हुआ तो अकेला था यज्ञ सामग्री की समस्त वस्तुएं मैंने प्रभु के शरीर से प्राप्त की स्वयं प्रभु ने मुझे 49 लोगों का ज्ञान कराया जिसमें मैंने ऋग्वेद की रचना की यह कह कर ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र नारद को 49 लोग का ज्ञान कराया जो भगवान ने उन्हें बतलाया था प्रभु ने मृत्युलोक में 24 बार क्यों अवतार लिया इसका कारण मैं तुम्हें बतलाता हूं अतः हे पुत्र नारद तुम ध्यान लगाकर भगवान के अवतारों की कथा का श्रवण करो
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Second Wing Chapter 6 Beginning
Lord Brahma's description of the great form of Lord Brahmaji has said that Narad, by whose inspiration the earth has been stabilized, is the Lord with thousand hands, thousand on a thousand nose ears and thousand heads. The one who is known as Gayatri Tripura, 1 foot dusting, growth, awakening and worshiping, worshiping Varun Dev, from where the air originated from the breakfast holes of the tree, etc., from the parts of the body of the Lord, from the ear to the ten directions and stomach From the eyes arose the ocean, the sun from the eyes, mountains from the bones of the body, mountains and rocky objects, rivers rose from the veins of the body, O Narada Brahmaji addressed Narada, Indradev from the arms, both Ashwani Kumar appeared from the nose and from the nose all the fragrance of the world This is how the night and day were created by the process of rising and falling of the eyelids. Maya Dharma to Yamraj laughter In the form of caste and religion, the back is in the hair of the head of the Lord. Whether it is inert or conscious, O Narad, after getting the permission of Lord Shri Narayan, I incarnated Daksha for the creation of the universe and ordered him to create a human form. By remembering the Lord, I received all the creation of the universe. His name is true, he has incarnated 24 times to get rid of worldly life, so man should remember his pastimes, so that the mind gets real peace and the feeling of purity is awakened and after getting rid of the troubles of traffic, cross the ocean. O Narada Janlok, then people and true people are inhabited by laughter and people, Lord Shri Hari has given two paths for the worldly beings. When I was born from the navel lotus of the Lord, I was alone. I got all the things of material things from the body of the Lord, the Lord himself gave me the knowledge of 49 people, in which I composed the Rigveda, saying this, Brahma ji gave the knowledge of 49 people to his son Narada, which the Lord had told him. I tell you the reason why he incarnated 24 times in the world of death, so oh son Narad, listen to the story of God's incarnations by meditating.
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