उद्धव जी का तन त्यागना हे राजन उद्धव जी महात्मा विदुर से कहने लगे प्रातः विदुर आप मुझे जाने की आज्ञा प्रदान करो उद्धव जी के मन सुनकर विदुर जी बिहार हो गए आंखों सजल होती बोले हैं भाई हम अज्ञानी हैं मूर्ख हैं जो प्रभु श्याम सुंदर के साथ वर्षों तक रह कर भी उसकी महिमा को ना जान सके उन दीपक के समान जो घर घर में उजाला फैलाता है किंतु उसके ऊपर अंधेरा ही रहता है प्रभु हमारे साथ रहे और हम उसकी महिमा को ना जान सके और अब उनके चले जाने के बाद पछता रहे हैं धिक्कार है हमें अपने पर और आप तो हाथों पर उसके साथ रहते थे वह धवजी फिर भी आप उनके मरम से अनजान रहे शायद यह भी उसकी माया ही थी अन्यथा आवश्यक पहचानते सच है उनकी इच्छा के बिना कुछ नहीं होता है भाई प्रभु की सेवा तो मैं नहीं कर सका किंतु आप जैसे प्रभु भक्तों की सेवा करने का अवसर मुझे मिल जाए तो भी मेरा जन्म लेना सफल हो जाए यह भी सत्य है कि हरि भक्तों की संगति एवं सत्संग का लाभ भी तब तक नहीं प्राप्त होता जब तक प्रभु की कृपा ना हो उनकी इच्छा ना हो अतः मेरी ज्ञान बुद्धि कहती है कि जरूर मैंने पूर्व जन्म में पूर्ण का कार्य किया था जो आपको दर्शन मुझे प्राप्त हुआ ए भाई अब मेरा इस स्थान पर अधिक समय गुजारना उचित नहीं है अतः आप हमें जानने की आज्ञा दें जितने ज्यादा समय तक आपके साथ रहूंगा माया मोह का बंधन बढ़ता ही जाएगा और हम माया मोह से विभक्त हो चुके हैं प्रभु ने अग्नि वायु जल पृथ्वी एवं आकाश का अंश लेकर मानव शरीर का सृजन किया और अब उन पांचों तत्वों को अर्थात भूतों का त्याग करने के लिए बद्रिका आश्रम जा रहा हूं वहीं पर प्रभु के चरणों का ध्यान करके उसके चरण कमलों में स्थान पाने का प्रयत्न करूंगा यह बातें कह कर उद्धवजी वहां से बद्री का आश्रम के लिए विदुर जी से विदा लेकर चले चले गए और पावन धरती पर पहुंचकर योगाभ्यास द्वारा अपनी श्वास क्रिया को रोककर ना स्वतंत्र का त्याग कर दिया तत्पश्चात उस शरीर से आत्मा निकलकर परमात्मा के रूप में जाकर विलीन हो गई
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Shrimad Bhagwat Puran Katha Third Skandha Chapter 5 Beginning
O Rajan Uddhav ji started telling Mahatma Vidur to leave Uddhav ji's body in the morning Vidur, after hearing Uddhav ji's mind, Vidur ji went to Bihar, the eyes became bright and said, brother, we are ignorant, fools who are with Lord Shyam Sundar. Even after living for years, we could not know his glory, like a lamp that spreads light in every house, but there is darkness over it, Lord be with us and we could not know his glory and now after his departure, we will regret it. We are ashamed of ourselves and you used to live with him on your hands, that Dhavji, yet you remained unaware of his meaning, perhaps it was also his illusion, otherwise it is necessary to recognize the truth, without his desire, nothing happens brother, then the service of the Lord I could not do it, but if I get an opportunity to serve Lord devotees like you, even then my birth should be successful. If they do not wish, therefore my wisdom intellect says that I must have done complete work in my previous birth, which you can get me to see. So it happened, brother, now it is not appropriate for me to spend more time at this place, so you allow us to know, the longer I stay with you, the bond of illusion will keep on increasing and we have been separated from the illusion of Maya. By taking part of the earth and sky, I created the human body and now I am going to Badrika ashram to renounce those five elements i.e. ghosts, while meditating on the feet of the Lord, I will try to get a place in his lotus feet by saying these things. Uddhavji went away from there to Badri's ashram after taking farewell from Vidur ji and after reaching the holy earth, by practicing yoga, by stopping his breathing, he gave up his freedom, after that the soul came out of that body and merged in the form of God.
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