श्रीमद्भागवत पुराण कथा तृतीय स्कंध अध्याय 4

श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध अध्याय 4 आरंभ

उद्धव द्वारा श्रीमद् भागवत स्तुति एवं प्रभु की प्रशंसा राजा परीक्षित से उद्धव जी के मन की व्यथा का वर्णन करते हुए श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् विदुर जी प्रभु की लीलाओं का वर्णन तन्मय होकर सुन रहे थे किंतु उद्धव जी की आंखों से लगातार आंसू धारा बह रही थी तब राजा परीक्षित में श्री सुखदेव जी से उद्धव जी के रोने का कारण पूछा यह कहते हुए कि वह लोग के लिए प्रस्थान करते समय प्रभु श्री कृष्णा ने उद्धव जी को मुक्ति मार्ग दिखला दिया था फिर उन्हें के रोने का क्या कारण था तब सुख महाराज बोले हे ज्ञानी परीक्षित प्रभु ने उद्धव जी को मार्ग बतलाया था और वह उस मार्ग पर चल भी रहे थे किंतु उस समय उसके मन की वही गति हो रही थी जो गति प्रियतम के प्रदेश चले जाने पर स्त्री की होती है प्रभु श्री कृष्ण के साथ हुए कांटों पर रहते थे अतः उनके चले जाने की व्यथा को सहन ना कर पा रहे थे कठिन त से अपने मन को धीरज देकर उद्धव जी महात्मा विदुर जी से बोले हे महात्मा विदुर आप स्वयं ज्ञानवान एवं प्रभु के अनन्य भक्त है मुझसे तो अच्छे मैत्रीय जी हैं जो प्रभु के अंतर्ध्यान होते समय प्रवाह क्षेत्र में उनके सम्मुख थे प्रभु के गमन के समय मैथिली जी ने उन्हें प्रणाम किया था उस समय त्रिलोक के पालनहार उसने कहने लगे हे मैथिली जी आप मेरे लिए चिंता ना करें मैं आपको अधीर हो रहे मन की व्यथा को भली प्रकार जानता हूं मैं अपनी माया से समस्त भूमंडल के प्राणियों को ना चाहता हूं किंतु आप मेरी माया तनिक भी ना सताएगी क्योंकि आप मेरे पूर्व जन्म के भक्त हैं इतना कहने के बाद उद्धव जी ने विदुर जी से प्रत्यक्ष में कहा मैथिली जी का जीवन धन्य हैं जिन्हें स्वयं प्रभु ने धीरज बंधाया और आगे समझाते हुए कहने लगे आपने वेदव्यास जी की प्रातः एवं ऋषि पराशर का पुत्र होकर समस्त भूमंडल का गौरव बढ़ाया है मनुष्यों के लिए आप सदा सर वस्त्र पूजनीय रहेंगे किंतु आपने को भवसागर से पार उतारने के लिए तू आता श्याम ऋषि द्वारा बताए गए भगवत पुराण की कथा का स्मरण करना एवं सच्चे मन से भक्ति करना प्रभु के वचन सुनकर उसके चरणों में शीश झुकाते हुए मैथिली जी ने कहा हे जगत के कर्ताधर्ता परमब्रह्मा आपका चरित्र समस्त सृष्टि के आश्चर्य से परिपूर्ण है महाकाल भी आपसे भाई खाता है आप तीनो लोक 14 भवन के मालिक हैं पूर्व चंद्र आपकी इच्छा पर चलते हैं आपकी पलक बंद होती है तो रात्रि का आगमन होता है किंतु आश्चर्य होता है प्रभु की गालियां मन से डर कर आप भागे आपका मरम कोई नहीं जान सकता क्योंकि कोई नहीं जान सकता प्रभु आपके मर्म को इतनी कथा कह कर विदुर जी से उद्धव जी कहने लगे अब मैं बद्रिका आश्रम जाकर प्रभु का ध्यान करते हुए इस नश्वर शरीर का त्याग करूंगा अब तक मुझे जीवित नहीं रहना चाहिए था किंतु प्रभु की आज्ञा में टाल नहीं सकता था किंतु आप उनके वियोग का दुख मुझसे सहन नहीं हो पा रहा है यह उन्हीं की कृपा एवं ज्ञान बाल था जिसके सहारे आप तक जीवित रहा तब राजा परीक्षित ने शुक्र जी बोले है राजन प्रभु की लीला है बहुत ही न्यारी है सुनने वाले रोने लगते हैं जिससे उनके जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और अंत समय में प्रभु उनके अपने पास बैकुंठ धाम में बुला लेते हैं नरक के दूध उनकी आत्मा छू भी नहीं पाते ऐसे नारी महिमा प्रभु नटवर नागर की अतः मनुष्य को चाहिए कि प्रभु की भक्ति अवश्य करें जिससे सद्गति प्राप्त हो 

TRANSLATE IN ENGLISH 

Uddhav's praise of Shrimad Bhagwat and praise of the Lord Describing the agony of Uddhav's mind to King Parikshit, Shri Sukhdev ji said, O king Vidur ji was listening to the description of the pastimes of the Lord, but tears flowed continuously from Uddhav's eyes. Then King Parikshit asked Shri Sukhdev ji the reason for Uddhav ji's crying, saying that while leaving for the people, Lord Shri Krishna had shown Uddhav ji the path of liberation, then what was the reason for him to cry then happiness Maharaj said, O wise Lord Parikshit had shown the path to Uddhav ji and he was walking on that path, but at that time his mind was moving at the same pace as that of a woman when her beloved had gone to the state with Lord Shri Krishna. He used to live on thorns, so he could not bear the agony of his departure, by patiently giving patience to his mind, Uddhav ji said to Mahatma Vidur ji, Mahatma Vidur, you yourself are knowledgeable and an exclusive devotee of the Lord, better friend than me. Those who were in front of him in the field of flow when the Lord was in meditation At that time Maithili ji had bowed down to him, at that time the guardian of Trilok, he started saying, oh Maithili ji, do not worry for me, I know very well the agony of your impatient mind, I do not want all the creatures of the earth with my Maya. I am, but you will not harass me at all because you are a devotee of my previous birth, after saying so much, Uddhav ji said directly to Vidur ji, blessed is the life of Maithili ji, whom the Lord himself has endured and while explaining further, you started saying Ved Vyas. In the morning of ji and being the son of sage Parashar, you have brought glory to the whole earth, you will always be worshiped by your head and clothes for humans, but you come to bring you across the ocean of the ocean, remember the story of Bhagavat Purana told by Shyam Rishi and have a true heart. Listening to God's words and bowing down at his feet, Maithili ji said, O Lord of the world, Parambrahma, your character is full of wonders of the whole creation, Mahakal also eats your brother, you are the owner of all the three worlds 14 buildings, the former moon on your wish. Let's go if your eyelid is closed then the night But it is surprising that you ran away fearing the abuses of the Lord, no one can know your meaning because no one can know the Lord by telling so many stories about your meaning and started telling Uddhav ji to Vidur ji, now I go to Badrika ashram and worship the Lord. While meditating, I will renounce this mortal body, till now I should not have lived but could not avoid it under the command of the Lord, but you are not able to bear the pain of their separation from me, it was his grace and knowledge with the help of which you Till he lived, then King Parikshit has said to Shukra ji, Rajan is the leela of the Lord, it is very beautiful, the listeners start crying due to which their sins of birth after birth are washed away and in the last time the Lord calls them to him in Baikunth Dham of hell. Milk does not even touch their soul, such a woman's glory is of Lord Natwar Nagar, so man should definitely do devotion to God, so that salvation can be attained. 


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