श्रीमद् भागवत कथा पुराण अध्याय 12 तृतीय स्कंध

भगवान का वारा रूप में अवतरित होकर पृथ्वी को पाताल से लाना

मैथिली जी बोले हे विदुर मनु शतरूपा जब तपस्या करने के लिए प्रस्थान कर गए तब ब्रह्माजी श्री नारायण का स्मरण करते हुए बोले हे प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं मेरे मन की व्यथा को समझने में समर्थ हैं जब तक आप मेरे ऊपर कृपालु ना होंगे मैं कुछ नहीं कर सकूंगा जीवों की उत्पत्ति का आदेश आपने मुझे दिया और मैं उनकी उत्पत्ति कर रहा हूं किंतु है दया निधान उन लोगों के रहने का स्थान होना चाहिए अब तक उत्पन्न किए प्राणियों को इस विशाल कमल पुष्प रूप स्थान दिया है फिर जिस पर आपकी कृपा से मेरी उत्पत्ति हुई किंतु निरंतर गति से जियो उत्पन्न हो कर रहा है उन्हें कमल पुष्प पर स्थान देना कठिन है प्रभु आप मेरी चिंता दूर करने की कृपा करें विधिवत प्रकार ब्रह्माजी द्वारा स्तुति एवं ध्यान करने पर श्रीहरि उन्हें ध्यान में दर्शन देकर बोले हे ब्रह्मा तुम विचलित ना हो जीवन के रहने के लिए पृथ्वी को मैं लाऊंगा यह कह कर ब्रह्मा जी के ध्यान से त्रिलोकीनाथ लुप्त हो गए उसके पश्चात श्रीहरि के विचार किए पृथ्वी को ब्रह्मांड से निकालकर हिरण दैत्य पाताल लोक में ले गया जिस समय प्रभु विचार कर रहे थे उसी समय उसकी प्रेरणा से ब्रह्मा जी को बड़े जोर की छींक आई उचित से ब्रह्मा जी के नाक से एक बच्चा उत्पन्न हुआ जो अंगूठी के अग्रभाग के समान हुआ और उसका रूप शुगर के समान था क्षणभर मैं उस वारा का शरीर विस्तार करके विशाल काया गजराज के समान हो गया और भयानक शब्दों में गर्जना करने लगा उनकी गर्जना सुनकर ब्रह्मा सहित मनु मार्केट एवं सत कुमार आदि अत्यंत भयभीत होकर यह विचार करने लगे कि यह कैसा विचलित जीव है जिसका तन तो मनुष्य जैसा है किंतु गले के ऊपर का भाग शुक्र जैसे हैं तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने अपनी ज्ञान दृष्टि से जानने के प्रयास किया तब उन्हें मालूम हुआ कि वारा रूप धारण कर स्वयं श्री हरि प्रगट हुए हैं और इस नए रूप में प्रभु ने पृथ्वी को पाताल से लाने हेतु अवतार धारण किया है तब वह श्री हरि का सुमिरन करते हुए बोले हे प्रभु आपने अपने वचनों को पूरा करने के लिए वारा रूप में अवतार धारण कर हम पर अति कृपा कर कीजिए आप धन्य है प्रभु आप धन्य हैं पुनः 12 प्रभु ने एक बार गर्जना कि उस भाया गर्जना को सुनकर तब लोग जन लोग एवं सत्यलोक में निवास करने वाले ऋषि मुनि एवं देवगढ़ विधिवत विथ मात्रों द्वारा उसकी उत्पत्ति करने लगे वेद वाणी सुनकर प्रभु ने एक बार पुनः भीषण तत्पश्चात उस कमल रूप के ऊपर से जल में कूद पड़े भगवान द्वारा स्वयं शीघ्र श्रीहरि थे फिर भी पशुओं के समान पृथ्वी को सुनते हुए जल में प्रवेश किए और पाताल लोक में जा पहुंचे जहां हिरण्याक्ष देते दिखाई पर वहीं पर पृथ्वी थी वह आरा प्रभु ने वहां पहुंचकर 12 करोड़ वजनार लंबी चौड़ी पृथ्वी को इस प्रकार आप ने दारु सू कर रूप में दो विशाल दातों जो बाहर निकाले हुए थे पर उठा लिया जैसे पृथ्वी 12 भी हो गई वारा प्रभु द्वारा पृथ्वी को ले जाते हुए देखकर हिरणमय दैत्य अक्षत कुलजीत कर उदित हुए और उसके मन को रोककर खड़ा हो गया और भयानक गर्जना करते हुए बोले उनसे युद्ध करने की शक्ति किसी देवता अथवा मनुष्य में ना थी वह अत्यंत पराक्रमी एवं बलवान था किंतु वारा भगवान ने अपने हाथ के प्रज्वलित गधा से क्षण मात्र में मार डाला और पृथ्वी को डालो पर ऊपर बैठे हुए जल से बाहर निकाले पृथ्वी को देखकर ब्रह्माजी सहित उपस्थित देवी देवता अत्यंत प्रसन्न होकर उनकी स्तुति करने लगे यह उधर आप अत्यंत कृपालु हैं ए शरणागत के रक्षक प्रभु जीस तरह आप पाताल लोक में हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी को ले आए उसी तरह इस जलपरी स्थित कर दीजिए जिससे सभी प्राणी आनंद से पृथ्वी पर निवास करते हुए यज्ञ हवन हदीस शुभ कार्य कर सकें आपके साथ हम अंचल देवी पृथ्वी को भी प्रणाम करते हैं ब्रह्मा एवं देवताओं द्वारा स्तुति एवं निवेदन करने पर वाराह भगवान ने वैसा ही किया जैसे देवता गण की चाहना थी

TRANSLATE IN ENGLISH 

Incarnating in the form of God to bring the earth from the underworld

Maithili ji said, O Vidur Manu Shatrupa, when he left to do penance, then Brahma ji, remembering Shri Narayan, said, oh Lord, you are an inner person, you are able to understand the agony of my mind, unless you are kind to me, I am nothing. You have given me the order for the origin of living beings and I am creating them, but it should be the place of residence of those people who have been created so far, have given this huge lotus flower form, then on which by your grace I have Originated, but living is being born at a constant speed, it is difficult to place them on the lotus flower, Lord, please remove my worries, after worshiping and meditating duly by Brahmaji, Shri Hari appeared to him in meditation and said, O Brahma, you are not disturbed. Ho, Trilokinath disappeared from the meditation of Brahma ji saying that I will bring the earth for the existence of life, after that the deer demon took the earth out of the universe after thinking of Shri Hari and took him to Hades, when the Lord was thinking about him at the same time. Inspiration to Brahma ji I sneezed loudly, right from the nose of Brahma ji a child was born, which was like the tip of the ring and its form was like sugar, in a moment I expanded the body of that wind and became like a gigantic body Gajraj and roared in terrible words. Hearing their roar, Manu Market and Sat Kumar, along with Brahma, were very frightened and started thinking that what kind of disturbed creature is this, whose body is like a human, but the upper part of the throat is like Venus, after that Brahma ji learned from his knowledge point of view. Then he came to know that Shri Hari himself has appeared in the form of a thunderbolt, and in this new form, the Lord has incarnated to bring the earth from the underworld, then he while praising Shri Hari said, O Lord, you have fulfilled your words. To accomplish this, do us a lot of grace by incarnating in the form of a thunderbolt. After listening to the Vedas, the Lord once After that, after that, he jumped into the water from the top of that lotus form, soon Shri Hari was there by the Lord himself, yet listening to the earth like an animal, entered the water and reached the Hades where Hiranyaksha was seen giving but there was the earth that Ara Prabhu After reaching there, he lifted the wide earth weighing 120 million, in this way, you lifted the two huge teeth which were taken out in the form of alcohol, as if the earth had become 12, and seeing the deer carrying the earth by the Lord, Akshat Kuljeet stood up and stopped his mind and said with a terrible roar that no god or man had the power to fight with them, he was very mighty and strong, but Vara God killed him in a moment with the ignited donkey of his hand and Pour the earth, but seeing the earth being taken out of the water sitting above, the deities present along with Brahma ji were very pleased and started praising them, here you are very kind, Lord, the protector of the refuge, just like you killed Hiranyaksha in Hades and brought the earth. In the same way, place this mermaid who So that all living beings can do auspicious work while residing on the earth with joy, we also bow down to the region goddess Earth with you. On the praise and request by Brahma and the gods, Lord Varaha did as the gods wanted. 


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