श्रीमद् भागवत कथा पुराण अध्याय 11 तृतीय स्कंध

ब्रह्मा जी के पुत्रों की उत्पत्ति

रूद्र जी तब करने के लिए प्रस्थान कर जाने तक की कथा सुनने के पश्चात महामुनि मैथिली जी ध्यान मांगना होकर कथा सुन रहे विदुर से अति प्रसन्नता पूर्वक बोले हे विदुर जी उसके पश्चात ब्रह्मा जी ने प्रभु श्री हरी द्वारा प्राप्त शक्ति का उपयोग करके अपने 10 पुत्रों की उत्पत्ति की अंगिरा पत्री पूल का 30 माचिस विघ्न वशिष्ठ कुल्हा प्रजापति दक्ष एवं नारद ब्रह्मा जी के दसों पुत्र उसके अलग-अलग अंगों से उत्पन्न हुए पुनीत ने ब्रह्मा जी के कान से जन्म लिया मारी की उत्पत्ति मंकी की शोभा विकता से ब्रिंग महाराज त्वचा से प्रगट हुए वशिष्ठ जी प्राण से कुल्हा ब्रह्मा जी के नाभि प्रदेश से प्रगट हुए एवं प्रजापति दक्ष की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के अंगूठे से हुई तथा श्री नारायण के परम भक्त जिन्होंने बाद में देवर्षि के रूप में सभी ने जाना उसकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी की गोद में हुई ब्रह्मा जी की छाती से धर्म एवं पीठ से आधार में उत्पन्न होकर समस्त सृष्टि से विस्तारित माइल हुए धर्म का रूप धारण कर स्वयं श्री हरिनारायण उत्पन्न हुए हृदय से काम छेदा गोवा के मध्य से क्रोध एवं होठों से लज्जा एवं लोग उत्पन्न हुए तथा मुख्य की वाणी से सरस्वती की उत्पत्ति हुई जो अत्यंत रूपवती कन्या के रूप में प्रगट हुई सरस्वती दिव्य वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित होकर उत्पन्न हुई थी जिससे उसकी  सुंदरता हाउ आर यू दिख रही थी प्रभु की माया से प्रेरित होकर अपने मुख से प्रगट हुए कन्या के ऊपर स्वयं ब्रह्मा जी मोहित हो गए एवं उसे भोग करने की आशिक उनके मन में उत्पन्न हुआ ब्रह्मा के मन में उत्पन्न अधर्म की भावना देखकर अंगिरा नारद एवं वशिष्ठ आदि उसके पुत्र ने उन्हें अधर्म कार्य करने से रोकते हुए बोले हैं पितामह सृष्टि के सृजन हार यदि आप ही अधर्म पूर्ण कार्य करेंगे आपकी कन्या के साथ आप ही व्यवहारिक करेंगे तो सांसारिक मनुष्यों की क्या गति होगी वह कुछ भी करेंगे उन्हें अपनी कन्याओं के साथ विवो जारी करने में तनिक भी लज्जा का अनुभव नहीं होगा यह कह कर कि जब ब्रह्मा जी ने ऐसा किया तो हमें इस तरह का कार्य करने में क्या आपत्ति है अतः है पितामह आप अधर्म कार्य ना करें कन्या से भोग करने की इच्छा का पूर्ण रूप से त्याग करें पुत्रों का ज्ञान से पूर्ण वचन सुनकर ब्रह्मा जी अत्यंत अजीत कोई लज्जा के कारण अपने पुत्रों के सामने देख कर बात करने में स्वयं को सूचित समझने लगे तो उन्होंने अपने उस शरीर का त्याग कर दूसरा शरीर धारण किया ब्रह्मा जी के मृत शरीर से उठने वाला अंधकार समस्त सृष्टि में कुमारी के नाम से जाना जाने लगा जो प्रातः काल के समय दिखाई देता है अपना दूसरा तन धारण करके ब्रह्मा जी ने अपने चारों मुख से एक-एक वेद की उत्पत्ति की इस तरह जगत में चारों वेद का अवतरण हुआ ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद एवं अथर्ववेद इसके बाद वास्तु शास्त्र वैदिक शास्त्र यज्ञ एवं दान रूपी चार विधान का निर्माण किया एवं प्राणी जगत के लिए चार आश्रम का निर्धारण किया ब्रह्मचर्य गृहस्थ 1 प्रशन तथा चौथा आश्रम सन्यास आश्रम निर्धारित करते ब्रह्मा जी ने मनु एवं शत्रु की उत्पत्ति की और बोले हे मनु एवं शतरूप अकेले मेरे द्वारा प्राणियों की उत्पत्ति से पूर्ण वृद्धि हो पाना कदाचित संभव नहीं है यह विचार कर मैंने तुम दोनों की उत्पत्ति की अतः मेरी आज्ञा अनुसार मैथुन किया द्वारा मनुष्य की उत्पत्ति करो ब्रह्मा जी की आज्ञा को शिरोधार्य करके मनु जी बोले हे पिता मां आपकी कृपा से मैं अत्यधिक मनुष्यों की उत्पत्ति करगा किंतु उससे पहले उसके रहने का स्थान होना चाहिए अति आवश्यक है तब ब्रह्मा जी बोले तुम ठीक कहते हो तुम्हारा कथन पूर्ण सत्य है अतः जब तक मैं मनुष्यों के निवास करने के स्थान का प्रबंध नहीं कर लेता तब तक तुम दोनों श्रीहरि का तब करो यह सुनकर मनु एवं स्वरूप तब करने के लिए प्रस्थान कर गए

TRANSLATE IN ENGLISH 

Origin of Brahma's sons

After listening to the story of Rudra ji, till he left to do so, Mahamuni Maithili ji said with great pleasure to Vidur, who was listening to the story after asking for attention, O Vidur ji, after that Brahma ji made use of the power received by Lord Shri Hari to his 10 sons. Origin of Angira Patri Pool's 30 matchsticks, Vashishtha Kulha Prajapati Daksha and Narad Brahma ji's ten sons were born from his different parts, Puneet took birth from Brahma ji's ear, Mari originated from Monkey's beauty, Bringing Maharaj's skin Vashisht ji appeared from the soul, Kulha appeared from the navel region of Brahma ji and Prajapati Daksha originated from the thumb of Brahma ji and the supreme devotee of Shree Narayan who later came to be known as Devarshi by all, his origin took place in the lap of Brahma ji. Shri Harinarayan himself arose from the chest of Brahma ji, taking the form of religion and expanding from the back to the base of the universe, Shri Harinarayan himself was born, pierced the heart, anger and shame from the lips and people arose from the middle of Goa and the voice of the chief from Rasvati was born, who appeared in the form of a very beautiful girl, Saraswati was born after being adorned with divine clothes, ornaments, from which her beauty was visible How are you, inspired by the illusion of the Lord, Brahma ji himself fascinated the girl who appeared from her mouth Angira, Narad and Vashishtha etc., after seeing the feeling of unrighteousness arising in the mind of Brahma, said that the father, father, defeat the creation of the world, if you only do unrighteous deeds. If you will do practical with your daughter, then what will be the speed of worldly human beings, whatever they will do, they will not feel any shame in releasing Vivo with their daughters by saying that when Brahma ji did this, then we should like this What is the objection to doing work, therefore, father, you should not do unrighteous deeds, completely abandon the desire to enjoy with the girl, listening to the words of sons full of knowledge, Brahma ji is extremely ajit, because of some shame, talking in front of his sons. to consider myself informed When he renounced that body and assumed another body, the darkness arising from the dead body of Brahma ji came to be known in the entire universe as Kumari, which is visible in the morning, by assuming his second body, Brahma ji surrounded himself. In this way all the four Vedas were incarnated in the world, Rigveda, Yajurveda, Samveda and Atharvaveda, after this, Vastu Shastra, Vedic scriptures, created four laws of sacrifice and charity and determined four ashrams for the animal world. Determining the 1st question and the fourth ashram, the Sanyas ashram, Brahma ji created Manu and the enemy and said, O Manu and Shatarup alone, it is probably not possible for me to get full growth from the origin of beings, considering that I have created both of you, hence my Create human beings by having sex as per the order, following the orders of Brahma ji, Manu ji said, oh father mother, by your grace, I will create a lot of human beings, but before that there should be a place for him to live, it is very important then Brahma ji said you are fine. You say that your statement is absolutely true, so until I can make arrangements for the place of residence of human beings, then both of you do the work of Shri Hari, then Manu and Swaroop then left to do 


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