श्रीमद् भागवत कथा पुराण अध्याय 10 तृतीय स्कंध

युग का वर्णन

विदुर जी का कथा सुनकर मैथिली जी अति आनंदित हुए तत्पश्चात बोले हे महात्मा विदुर सृष्टि की विधि विधाता का प्रश्न अति उत्तम है पता मैं आपको वह ज्ञान प्रदान करता हूं जो ब्रह्मा जी ने युवक को 4 भाग में बैठते समय उक्त अवधि का नाम दिया चार युग का निर्माण करने के पश्चात चारों युग को अलग-अलग काल तक बने रहने का समय निश्चित किया किंतु उससे भी पहले यह जान लेना आवश्यक है कि उपचार हैं सतयुग त्रेता युग द्वापर और कलयुग सतयुग जिसमें सत्य का युग कहा जाता है उसकी आयु 48 साल दिव्य वर्ष की ब्रह्मा जी ने निर्धारित की 3602 वर्ष का त्रेता युग 24 साल दिव्य वर्ष का द्वापर युग एवं 12 सौ वर्ष का दिव्य वर्ष की आयु काली युग को प्रदान की अतः मनुष्य के समय के अनुसार युवाओं की अवधि इस प्रकार है देवताओं का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर होता है तथा देवों का 1 वर्ष मनुष्य के 360 वर्ष हुआ इस तरह मनुष्य के समय अनुसार सतयुग की आयु 17 लाख 88 हजार वर्ष की हुई 12 लाख 96 हजार वर्ष का त्रेतायुग 864000 वर्ष का द्वापर एवं 432000 वर्ष की आयु कली युग की है यह विदुर जी युग बदलने के साथ धर्म की गति भी बदलती रही सतयुग में धर्म के चार चरण थे त्रेता युग में धर्म का एक पैर टूट गया अर्थात तीन पैर बचे दापर में दो पैर और कलयुग का आगमन होने पर धर्म का मात्र एक पर बचा अर्थात तीन चरण टूट गए मृत्यु लोक से देव लोक तक काल के रूप अलग-अलग हुआ करते हैं मैथिली जी बोले हे विदुर प्राणी जगत से लेकर 1 औषधियों तक का ब्रह्मा जी ने सृजन कर डाला पृथ्वी पर सजीव से लेकर निर्जीव तक का निर्माण किया फिर भी उनके मन को शांति ना मिली संसार का विस्तार करने हेतु भावना बनी रही थी चित अधीर हो रहा था तब उन्होंने सनक सनातन सनातन एवं संत कुमार की रचना की जो श्रीहरि का अंश लेकर प्रकट हुए ब्रह्मा जी ने इस 4 भाइयों को प्रजा का निर्माण करने की आज्ञा दी ब्रह्मा जी की बात सुनकर चारों भाई ने विचार किया कि पिताजी हमें प्रभु का भजन करने की आज्ञा ना देकर अन्य तरह से कार्य सिद्ध चाहते हैं उन चारों भाइयों के मन में ज्ञानरूपी भावना का संचार हुआ जो श्रीहरि की प्रेरणा थी और प्रभु की प्रेरणा से ओतप्रोत मन में यही निर्णय लिया कि जो माता-पिता अथवा भाई प्रभु के ध्यान भजन में बाधक बने उन्हें अपना नहीं समझना चाहिए हम प्रजा की रचना नहीं करेंगे यह विचार कर विचारों भाई हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी के सम्मुख खड़े हुए और निवेदन करते हुए बोले हे रचनाकार हे पितामह हम अभी काम क्रोध मद एवं लोक के वशीभूत ना हो कभी इंद्रिय सुख प्राप्त करने की अभिलाषा ना उत्पन्न हो ना हम किसी तरुण अवस्था को प्राप्त हो और जीवन पर यंत्र बुढ़ापा भी ना आए हम चारों भाई सदैव 5 वर्ष की आयु का बने रहने की अभिलाषा रखते हैं अतः आप हमें 5 वर्ष के बने रहने का वरदान प्राप्त करें इसलिए की इंद्रियां विषय भोग तथा सांसारिक मोह माया से दूर रहकर श्री नारायण के ध्यान एवं भजन की अभिलाषा करते हैं उनके वचन सुनकर ब्रह्मा ने मनोवांछित वरदान दे दिया कि तुम लोग सदा 500 वर्ष की आयु के बने रहो मेरा वरदान सत्य होगा किंतु मेरी आवाज क्या आदेश ना मानकर करके अत्यंत ही अनुचित कार्य किया है इतना कहते कहने के पश्चात ब्रह्मा जी का हृदय क्रोध से भर गया आया समस्त शरीर अत्यधिक क्रोध से कब कपा कपा महान होने लगा जो कि प्रभु श्री हरि ने ब्रह्मा जी को रचनाकार के रूप में प्रकट किया था जिस कारण ब्रह्मा जी के कोट से एक नई ज्योति की रचना हुई वह क्रोध रूपी ज्योति दोनों के बीच से श्याम माल पुरुष के रूप में उत्पन्न हुई उस पुरुष की आंखें रत्ना भी थी एवं  पैदा होते ही आती तेज स्वर में रुद्रा करने लगे उसके रुद्रम से ब्रह्मांड थरथरा उठा तब ब्रह्मा जी ने पूछा हे पुत्र तुम रोते क्यों हो भू के मध्य से ब्रह्मा जी के क्रोध के कारण उत्पन्न हुए पुरुष ने कहा हे पितामह मैं अनाम हूं आप अति शीघ्र मेरा नाम करण कीजिए ब्रह्मा जी ने विचार किया यह बालक पैदा होते ही रुद्रन करने लगा अतः यह रूद्र होगा तत्पश्चात नामकरण करते हुए बोले हे बालक 13 अवतार रूद्र अवतार है तू मेरी आज्ञा मानकर संसार में प्राणियों की रचना कर बालक रूद्र ने ब्रह्मा के आदेश को शिरोधार्य किया तत्पश्चात ब्रह्मा जी पुनः बोले हे बालक रूद्र तुम संसार में प्राणी जगत के लोग शिव शंकर एवं महादेव आदि नामों से पुकारो गे अब जाकर मेरी आदेश का पालन करो यह सुनकर रूद्र अवतार ने काम लोग एवं अहंकार से भरकर रूद्र क्रोधी रूप धारण कर प्राणियों की रचना का कार्य आरंभ किया जिससे भूत-प्रेत राक्षस एवं प्रसाद आदि की रचना हुई पुत्र सृष्टि रचना से ब्रह्मा जी संतुष्ट ना हुए बल्कि मन और ज्यादा शांत हो गया तब वे रूद्र जी से बोले हे रूद्र अवतार क्रोध के कारण तेरी उत्पत्ति हुई है तुम मैं तमोगुण का वास है तेरे द्वारा प्रकट हुए प्राणी अधर्मी एवं पापी होंगे इससे पृथ्वी पर भार बढ़ेगा उचित यही होगा कि तू जाकर तपस्या कर और तब तक तपस्या कर जब तक कि तेरे भीतर समाए तमोगुण नष्ट ना हो जाए जब तेरे शरीर में सतोगुण प्रविष्ट हो जाए तब प्रभु से सात्विक गुणों प्रजा की रचना करना पितामह के वचनों को मानकर रूद्र जी ने रचना बंद कर दी और तपस्या करने के लिए पर्वत पर चले गए

TRANSALATE IN ENGLISH 

description of the era

Maithili ji was overjoyed after hearing the story of Vidur ji, then said, oh Mahatma Vidur, the question of the creator of the universe is very good, know that I give you the knowledge that Brahma ji gave the name of the said period to the young man while sitting in four parts. After creating the four Yugas, it is necessary to know that the remedies are Satyuga, Treta Yuga, Dwapar and Kali Yuga, in which the age of truth is called, its age is 48 years divine. Brahma ji prescribed 3602 years of Treta Yuga, 24 years of divine year, Dwapar Yuga and 12 hundred years of divine year to Kali Yuga, so according to the time of man, the period of youth is as follows: One day of the gods. 1 year of the gods is equal to 360 years of human beings and in this way, according to the time of man, the age of Satyuga is 17 lakh 88 thousand years, 12 lakh 96 thousand years of Tretayuga, 864000 years of Dwapar and 432000 years of age. This Vidur ji belongs to the era. With the changing of the era, the pace of religion also kept on changing. There were four phases, one leg of religion was broken in Treta Yuga, that means, two legs were left in Dapar and on the arrival of Kali Yuga, religion was left on only one, that is, the three phases were broken, from the world of death to the world of God, the form of time varied. Let's do Maithili ji said, O Vidur, Brahma ji created from the world to 1 medicine, created from living to non-living on earth, yet his mind did not get peace, the feeling was there to expand the world. When it was happening, they created Sanak Sanatan Sanatan and Sant Kumar, who appeared with the part of Shri Hari, Brahma ji ordered these 4 brothers to create subjects, after listening to Brahma ji, the four brothers thought that Father should give us the blessings of God. By not giving permission to do bhajans, wanting to accomplish work in other ways, the spirit of knowledge was infused in the minds of those four brothers, which was the inspiration of Shri Hari and took this decision in the mind filled with the inspiration of the Lord that the parents or brothers who should meditate on the Lord. Those who become an obstacle in the hymn should not consider them as their own, thinking that we will not create the subjects, brother hands Standing in front of Lord Brahma and requesting, he said, O creator, O father, we should not be under the influence of lust, anger, and people, never desire to attain sense pleasure, nor should we attain any youthful stage and old age on life. Even if we don't come, all the four brothers desire to remain at the age of 5 years, so you get us the boon of staying for 5 years, so that by staying away from the pleasures of the senses and worldly attachments, the desire for meditation and bhajan of Shri Narayan After listening to his words, Brahma gave him the desired boon that you may live up to the age of 500 years, my boon will be true, but by not obeying my voice, I have done a very inappropriate act, after saying this, the heart of Brahma ji got angry. When the whole body was filled with excessive anger, when Kapha Kapha started becoming great, which Lord Shri Hari had revealed to Brahma ji as the creator, due to which a new light was created from the coat of Brahma, that anger-like light of both. The eyes of that man were born in the form of a black man from the middle. Ratna was also there and as soon as she was born, she started doing Rudra in a loud voice, then the universe trembled from her Rudram, then Brahma ji asked, oh son, why do you cry, the man born due to the anger of Brahma ji from the middle of the earth said, O father, I am anonymous. Am you name me very soon, Brahma ji thought that this child started to rudran as soon as he was born, so it will be Rudra, after that while naming he said, oh child, 13 incarnation is Rudra incarnation, you obeyed my orders and created beings in the world, the child Rudra After obeying the order of Brahma, then Brahma ji said again, O child Rudra, you will call the people of the animal world by names like Shiv Shankar and Mahadev etc. After taking the form, started the work of creation of creatures, due to which the creation of ghosts, demons and prasad etc., Brahma ji was not satisfied with the creation of the son's creation, but the mind became more calm, then he said to Rudra ji, O Rudra avatar because of your anger. You have originated, I am the abode of Tamogun The creatures manifested by you will be unrighteous and sinners, it will increase the burden on the earth, it would be appropriate that you go and do penance and do penance till the tamo guna within you is destroyed, when sattvik enters your body then sattvik from the Lord. To create the people of virtues, following the words of the grandfather, Rudra ji stopped the creation and went to the mountain to do penance. 


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