श्रोताओं के मध्य बैठे संत कुमार जी ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे उस वक्त जलकुंड में खिलता हुआ कमल पुष्प उसका मुख मंडल और पूर्वी तेजस्विता से आलोकित हो रहा था उसके सम्मुख बैठे नारद जी चुप रहने लगे ना थे वह बोले थे ऋषि श्रेष्ठ श्रीमद् भागवत सप्ताह परायण को यदि आप हमें सुनाएं तो हम श्रोता घाट पर आप की महान कृपा होगी तब संत कुमार जी खुद उच्च स्वर में बोले जिससे कि दूर तक बैठे श्रोता सुन सकें है देवर्षि आपकी जिज्ञासा को हम अवश्य पूर्ण करेंगे क्योंकि भगवान कथा सुनने में जितना हनन आपको प्राप्त होगा उससे कहीं ज्यादा आनंद प्राप्ति मुझे स्वयं होगी अब आप सभी ध्यान लगाकर पूर्ण निष्ठा के साथ सुने सप्ताह प्रांगण की कथा को भाद्रपद कुमार कार्तिक अगन आषाढ़ श्रावण मास में सुना अति उत्तम एवं फलदाई होती है सोता गानों को निश्चित ही मोक्ष पद की प्राप्ति होती है इसमें कोई संदेह नहीं है किंतु सप्ताह प्रांगण कराते समय नगर ग्राम और अपने इष्ट मित्रों को अवश्य आमंत्रित करना चाहिए जाती पाती की कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए जाति पाति की भेदभाव को रखने वाले व्यक्ति के हृदय में कभी प्रभु वास नहीं करते जहां तक हो सके सप्ताह यस घर में करना चाहिए यदि उचित स्थान ना हो तो मंदिर बाग बगीचा अथवा किसी ऐसे स्थान पर सप्ताह परागण का प्रयोजन करना चाहिए जहां पूर्ण रूप से स्वच्छता हो यदि घर में कर रहे हैं तो उसके स्थान को रिपोर्ट कर दो कर गहरी चावल और अन्य आदि से चौका बनाएं केले के तने से मंडप बनाकर कथा वाचक को उचित स्थान प्रदान करें श्रोता गण को भी यथा योग्य आसान दें कथा आरंभ होने से पूर्व ध्यान इस नाम से पूर्णरूपेण में स्वस्थ निवृत्त होकर आ जाएं और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से एकत्रित होकर कथा का श्रवण करें कथा आरंभ होने से पूर्व विभिन्न विनाशक विग्नेश्वर श्री गणेश जी का पूजा करें जिससे कि सप्ताह यज्ञ में किसी प्रकार की बाधा अथवा रुकावट ना उत्पन्न हो जिसके बाद भक्त हितकारी श्री वासुदेव श्री कृष्ण जी की विधि विधान से पूजा होनी चाहिए धूप दीप नैवेद्य और चंदन आदि से श्रीमद् भागवत की पूजा करने के पश्चात कथावाचक की पूजा करें क्योंकि श्रीमद्भागवत रूपी अमृत रस की वर्षा वही करेंगे इसलिए कथावाचक को अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र आभूषण आदि प्रदान करें और फिर कथा सुनाने का निवेदन करें जिस समय कथा आरंभ हो श्रोता अपने मन में प्रभु के श्री चरणों में अर्पित कर दे यार था था संभव कथा सूर्योदय से पूर्व आरंभ हो जाए तो अति उत्तम है मध्यम के बाद तीन पहर बीत जाए तब दो घड़ी के लिए कथा विश्राम की अवधि रखें इस बीच में श्रोता का मंचन चलना हो अल्पाहार करें अथवा सुषमा भोजन करें सर्वोत्तम तो यह होता है कि निराहार रहे निराहार रहना वेद शास्त्रों में भी उत्तम माना जाता है तथा श्रोता को पत्तल पर भोजन कराने चाहिए एवं भूमि का चयन करना चाहिए गिराती भोजन को कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि गिराती भोजन के करने से तन में भारी एवं आलस्य आता है जो कथा श्रवण में श्रोता के लिए बंधक है निर्धन भाग्यहीन पापी दुराचारी अधर्मी एवं बंधन बांझ स्त्री श्रीमद् भागवत कथा सुने कथा के श्रवण से ही आनंदकंद की कृपा से उन सभी पापियों के पाप दूर हो जाएंगे नास्तिक के मन में भागवत भक्ति जाग उठे की कथा की सप्ताहिक के पश्चात विधि पूर्वक उद्यापन कराना चाहिए किंतु भागवत भक्त यदि उद्यापन ना करें तो चिंता का विषय नहीं है मृत करताल ध्यान आदि से कथा संपन्न होने के पश्चात हरि कीर्तन अवश्य करें निर्धन यह चीकू और ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ध्यान दें गृहस्थ श्रोता को दसवें स्कंध के श्लोक के विधि पूर्वक कथावाचक से पूछ कर तेल घी दूध मेवा मिश्री मिष्ठान आदि का भोग लगाकर पूजा करें यदि अति शुभ फल होगा जिसके उपरांत ब्राह्मण भोजन कराएं एवं दान दें विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें दान में गोदान सर्वोत्तम दान माना जाता गया है यदि संभव हो सके तो गौ दान अवश्य करें श्री सुखदेव जी की आयु की गणना नहीं की जा सकती जिस समय कथा हो रही थी शस्त्रों वर्षों की आयु वाले श्रोताओं को आनंदित करने वाले सुखदेव जी भी आ पहुंचे उस के आगमन से श्रोता गण सहित सूत जी अत्यंत प्रसन्न हुए श्रोता गाने सुखदेव जी को दंडवत प्रणाम किया और उन्हें आदर के साथ यथोचित उच्च आसन पर बैठने एवं स्वयं नारद जी ने उनकी विधिवत पूजा की बैठक के पश्चात सुखदेव जी रूप तोलते मुख्य बिंदु से वेद रूप पवचन बाहर निकलने लगे हुए बोले यह समस्त उपस्थित श्रोता गण वेद पुराण उपनिषद सभी ग्रंथों का मूल तत्व श्रीमद्भागवत है इसके स्रोत श्रवण से ठीक उसी तरह आनंद प्राप्त होता है जिस प्रकार जिओ गूंज मीठे फल को अंतर्गत भी भावे कथा श्रवण से प्राप्त होने वाले सदैव अपनी होती है किंतु हर श्रोता उस आनंद का पूर्ण रूप से अनुभव करता है और संस्कृत भाषा में एक कथा है करोति वाचालं पंगु बीरम जिसका अर्थ है श्रीमद् भागवत के श्लोक श्रवण करने से श्रोता पर भी मुरली मनोहर श्याम मालधारी श्री कृष्णा जी की अति कृपा होती है उसकी कृपा से गूंगा बोलने लगता है एवं लंगड़े भी चलने फिरने में समर्थ आ जाती है श्री सुखदेव जी अपना प्रवचन कर ही रहे थे कि श्री वासुदेव प्रभु आपने सहायक अर्जुन एवं अन्य पार्षदों सहित स्वयं प्रकट हुए श्री कृष्ण चंद्र जी को देख कर सोता गण भाव विह्वल हो गए उसके आनंद की सीमा ना रही उसकी विधिवत पूजा श्रोताओं ने की और उच्च आसन पर बैठे और तन्मय होकर हरि कीर्तन करने लगे नारद जी प्रभु के प्रेम में मगन होकर अपनी वीणा और करताल बजाने लगे अन्य श्रोता महावीर नींद आती बजाने लगे उस कीर्तन से प्रश्न होकर महादेव शंकर पार्वती और स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी भी आ पहुंचे इंद्रा और अन्य उम्मीदवारों ने जयघोष करते हुए उन पर स्वर्ग से पुष्प वर्षा की इन सब के मध्य भक्ति ज्ञान और वैराग्य अत्यंत क्रांति में रूपा कर अति तेजस्वी होकर नृत्य करने लगे इन सब से प्रसन्न होकर श्रीहरि अपने प्रिय भक्तों से बोले हे भक्तजनों मैं आप सब पर प्रसन्न हूं आपसे जिस प्रकार से मेरी आराधना किए उसे प्रसन्न होकर वर देना चाहता हूं मांगू क्या चाहते हो सभी भक्तों ने मिलकर उच्च स्वर में जयघोष किया और बोले आनंदकंद श्री कृष्णा जी की जय समूचा ब्राम्हण जयघोष से गूंज उठा क्योंकि भक्तों के साथ इंद्र आदि देव भी जयघोष में शामिल हुए उसके पश्चात सभी भक्तों एक साथ बोले हे भगवान हमारी इच्छा यही है जहां कहीं भी सकता परायण हो वहां आपके चरणों कमल अवश्य पहुंचे तरसते कह कर भक्त हितकारी श्री वासुदेव भगवान आप ने पार्षदों सहित गोलोक धाम को चले गए प्रभु के प्रस्थान करने के पश्चात सूतजी ने कहा हे भक्तों काली युग के 30 वर्ष बीत जाने के पश्चात भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की नवमी को सुखदेव जी ने महाराजा परीक्षित को यह कथा सुनवाई 100 वर्ष व्यतीत होने के पश्चात अषाढ़ शुक्ल नवमी को इस कथा के श्रवण से प्रेत योनि में दूदू कारी को मुक्ति मिली तत्पश्चात काली युग के 30 वर्ष पूर्व और व्यतीत होने पर कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को संत आदित्य जी महाराज ऋषि यहां भागवत कथा देवर्षि नारद से कही थी जिसे सुनकर नारदजी भी अपने को धन्य समझने लगे
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Shrimad Bhagwat Katha Chapter 6 Beginning
Week Paran with Law Legislation
Sant Kumar ji sitting in the midst of the audience seemed as if the lotus flower blooming in the water tank was being illuminated by his face and eastern brilliance, Narad ji sitting in front of him kept silent or he had said sage Shrestha Shrimad Bhagwat Week If you narrate Parayan to us, then we will be of great grace to you at the audience ghat, then Sant Kumar ji himself spoke in a loud voice so that the listeners sitting far and wide can hear, Devarshi, we will definitely fulfill your curiosity because the amount of harm you suffer in listening to God's story I myself will get much more pleasure than I would get, now all of you listen with full devotion, listen to the story of the week courtyard with full devotion, Bhadrapada Kumar, Kartik Agan, Ashadha, is very good and fruitful, sleep songs would have definitely attained the position of salvation. There is no doubt about it, but at the time of conducting the week's courtyard, one must invite the city village and his favored friends, that there should be no discrimination, God never resides in the heart of a person who keeps discrimination of caste and caste as far as possible. Week This should be done in the house, if there is no proper place, then the purpose of pollination should be done in the temple, garden or any such place where there is complete cleanliness, if you are doing it in the house, then report its place by doing deep rice and others etc. Make a square from the stem of a banana, provide the appropriate place to the story teller, give it as easy as possible to the audience, before the beginning of the story, meditate with this name in full health and come together with full devotion and devotion to the story. Listen, before the beginning of the story, worship the various destroyers Vigneshwar Shri Ganesh ji so that there is no obstacle or obstruction in the week's yagya, after which the devotee's beneficiary Shri Vasudev Shri Krishna ji should be worshiped by the law, incense, lamp, naivedya and After worshiping Shrimad Bhagwat with sandalwood etc., worship the narrator, because he will shower the nectar juice in the form of Shrimad Bhagwat, so provide the narrator with clothes, ornaments, etc. according to his ability and then request to narrate the story, at the time when the story begins, the listener will feel in his mind. in the Lord's Offer it at the feet of Shri. It is best to eat food, it is best to stay fast, it is also considered best in the Vedas and the listener should feed on the plate and choose the land, never eat the food that falls because it is heavy in the body due to eating food. And laziness comes, which is hostage to the listener in listening to the story, poor luckless sinners, wicked, unrighteous and bondage barren women listen to the story of Shrimad Bhagwat Udayapana should be done methodically after the week of the story, but if the devotees of Bhagwat do not do Udyapan, then it is not a matter of concern, after the completion of the story with dead Kartal meditation etc., Hari Kirtan must be done by the poor, this cheeky and Brahmins should meditate according to their ability. give to the household audience After asking the narrator of the tenth stanza methodically, offer oil, ghee, milk, dry fruits, sugar candy, etc. If possible, please donate the cow, the age of Shri Sukhdev ji cannot be calculated at the time when the story was happening. ji was very pleased, the audience bowed down to Sukhdev ji and with respect to sitting on a proper high seat and after the meeting of his duly worshiped by Narad ji himself, after weighing Sukhdev ji, the words of Vedas started coming out from the main point and said, All the listeners present, Veda Purana Upanishad, the basic element of all the texts is Shrimad Bhagwat, its source gives pleasure in the same way as the joy received by listening to the Bhave Katha under the echo sweet fruit is always its own, but every listener has that joy. fully experienced And there is a story in Sanskrit language, Karoti Vachalam Pangu Biram, which means listening to the shlokas of Shrimad Bhagwat also gives great grace to Murli Manohar Shyam Maldhari Shri Krishna ji, by his grace, the dumb start speaking and the lame are able to walk. Samarth comes when Shri Sukhdev ji was just giving his discourse that Shri Vasudev Prabhu, his assistant Arjuna and other councilors, who appeared himself, on seeing Shri Krishna Chandra ji, the soul became stunned, there was no limit to his joy, his duly worshiped the audience. and sat on a high seat and began to meditate on Hari Kirtan. Indra and other candidates also came, shouting and showering flowers on them from heaven. In the midst of all this, devotional knowledge and detachment began to dance in great revolution and danced very brilliantly.
Hari said to his dear devotees, oh devotees, I am happy on all of you, I want to bless you with the way you worship me, ask what do you want, all the devotees together shouted loudly and said Anandkand Shri Krishna ji ki jai samoocha The brahmin resonated with the hymn, because with the devotees, Indra and other gods also joined in the chanting, after that all the devotees said together, oh God, this is our wish, wherever it is possible, the lotus feet must reach your lotus feet by saying that the devotee's benefactor Shri Vasudev Bhagwan You went to Golok Dham along with the councilors, after the departure of the Lord, Sutji said, oh devotees, after 30 years of Kali Yuga, on the ninth of Shukla Paksha of Bhadrapada, Sukhdev ji heard this story to Maharaja Parikshit after the passage of 100 years. After hearing this story on Ashadh Shukla Navami, Dudu Kari was liberated in the phantom vagina, after that 30 years before the Kali Yuga and after passing the Navami of Kartik Shukla Paksha, Saint Aditya Ji Maharaj sage here told the Bhagwat story to Devarshi Narad. Naradji also kills himself began to understand
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