श्रीमद् भागवत कथा अध्याय 5

श्रीमद् भागवत कथा अध्याय 5 आरंभ

दूदू कारी को प्रेत योनि की प्राप्ति और गोकर्ण द्वारा सप्ताह विधि सुनने से उद्धार



उपयुक्त कथा सुनने के पश्चात श्री सूत जी चुप हो गए समस्त ऋषि गण एवं देवासी नारद उसके पुनः बोलने का इंतजार कर रहे थे परंतु सूची चुप ही रहे तब नारद जी बोले हे मुनीश्वर इसके आगे की कथा सुनने की कृपा करें अन्यथा अर्द्ध कथा सुनकर हम सभी यूं ही अधर में लटके रहेंगे जिस तरह महर्षि विश्वामित्र के तपोबल से संदेह स्वर्ण का आरोहण हो जा रहे महाराजा त्रिशूल जोकि इंद्रदेव के बल प्रभाव से वापस धरती की तरफ लौटने लगे तब विश्वामित्र जी उन्हें पुनः अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचाने का प्रयास करने लगे इंद्र और महर्षि विश्वामित्र के युद्ध में त्रिशूल चक अधर में ही लटके रह गए सूची बोले मैं जानता हूं देवर्षि नारद कि आप बहुत ही वाह उठ हैं वह आप चतुराई कोई आपसे सीखे तब नारद जी अति बिनती होकर बोले हैं महामुनी हम आपके सम्मुख कुछ भी नहीं है आप साक्षात भगवान अमृत पिला रहे हैं यह आपकी हम पर असीम कृपा है कृपा करके अपना प्रवचन जारी रखें तब सूची बोले हे ऋषि गान ब्राह्मण के वन प्रस्थान के पश्चात अधर्मी दूदू कारी अपनी माता को पीटते हुए बोला तू मुझे गड़ा हुआ धन बता दे अन्यथा मैं तुझे प्राण तक निकाल लूंगा उसी दिन रुधौली ने यह कह कर अपनी जान बचाई कि कल बतला दूंगी धू धू ली ने उसे समय से झूठ का सहारा लेकर अपनी रक्षा कर ली परंतु दूसरे दिन यह विचार कर ही घर में धन-संपत्ति के नाम की कोई वस्तु विद्यमान नहीं है मैं कहां से धन ला कर दूं अधिकारी को दूंगी यह सोचकर वह घर से बाहर निकल गई और जाकर एक कुएं में गिर कर मर गई तब गोकर्ण ने वहां रहना उचित ना समझ कर क्योंकि वह अत्यधिक सातवी विचार विचारों वाला था तब तीर्थ यात्रा पर चले जाने उसने श्री इस विकार उचित समझा दो करण के चले जाने के पश्चात घर में अकेला दोदो कारी रहने लगा तब उसके सम्मुख किसी प्रकार का बंधन ना था पूर्ण रूप से वह बेचारी और अधर्मी हो गया चोरी और ठगी करके वह धन लाता और वेश्या गमन करता 1 दिन उस वेश्या ने सोचा कि यह चोरी करके धन ले आता है यदि यह कभी पकड़ा गया तो इसके साथ मुझे भी दंडित होना होगा अतः इसे मार डालना चाहिए यह विचार कर जलती लकड़ियों से दूदू कारी को मार मार कर मार डाला और उसी स्थान पर एक घड़ा गड्ढा खोदकर उसके शव को धरती के गर्भ में डाल दिया जब उस वेश्या से पड़ोसियों ने पूछा कि अधिकारी कहां है तो वह झूठ का सहारा लेकर बोली वह व्यापार करने के लिए परदेस गया है इसी कारण यह सर्वविदित सत्य है कि वेश्या कभी किसी की अपनी नहीं होती इन्हें अपने समझने वाला महामूर्ख की श्रेणी में आता है उनकी जहां पर अमृत और उद्धार पेट में 20 की थैली भरी होती है मृत्यु पश्चात अधिकारी की आत्मा अतृप्त अवस्था में भटकने लगे उसे प्रेत योनि की प्राप्ति हुई उसे सर्दी गर्मी बारिश सताने लगी भूख प्यास में व्याकुल होने लगा कुछ दिनों के पश्चात उसके भाई को करण को यह ज्ञात हुआ कि दूदू कार्य मर गया है और क्रिया कर्म नहीं हुआ है तब उसने गाय गया जाकर उसका सर्वत्र पिंडदान किया इस तरह कई तीर्थों में उसका पिंडदान करने के पश्चात वह अपने घर आया और रात को वहीं सोया सुप्त अवस्था में कभी हाथी कभी बैल कभी मेंढक तो कभी भैंस के रूप में उसे अधिकारी को देखा अतः गांव करण ने उसे पूछा तू कौन है भूत प्रेत और अथवा राक्षसों में से किस योनि का जीव है दोदो कारी में बोलने की शक्ति क्षीण हो चुकी थी इसलिए इसलिए वह बोल ना सका गांव कारण ने देखा वह अति बी फॉर बॉल होकर रो रहा है तब उसने जल प्राप्त से जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए दूधों का रीपर जल छिड़काव जिसके प्रभाव से वह बोलने बोल सकने योग्य हो गया तब वह बोला है वह करंट मैं तुम्हारा भाई दोदो कारी हूं बेति ने मुझे मार डाला और मुझे खाना खाने पीने की कुछ नहीं मिलता है मैं अब तक वायु पीकर जीवित हूं हे भाई तुम किसी प्रकार से मेरा उद्धार करो तब गोकर्ण बोला हेतु अधिकारी तेरे उद्धार हेतु मैंने सभी तीर्थों में जाकर तेरा सर वस्त्र किया है फिर भी तू मुझस इस प्रेत योनि से मुक्ति ना मिली दूदू कार्य बेहाल होकर बोला मैं घोर पापी अधर्मी होने के कारण हजारों साफ करने के उपाय सात मुक्ति पद को प्राप्त ना हो सकूंगा अब तू ही कोई उचित उपाय करो जिससे मुझे इस अदम प्रेत योनि से मुक्ति मिलेगी यह कह कर दो तू कारी वहां से चला गया जब नगर के लोग अधिकारी से भेंट करने आए तो सब को यथा योग्य सामान देने के बाद उसे पूछा यह सज्जनों मेरा भाई अपने नीच कर्मों के कारण प्रेत योनि में भटक रहा है उसके उद्धार का कोई उचित उपाय बताएं वहां आए पंडितों ने कहा हे गूगल तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सूर्यदेव ही बतला सकते हैं अतः तुम उसके पास जाओ जब पंडितों के प्रस्थान करने के पश्चात गोकर्ण सूर्य देव की आराधना एवं भजन चिंतन में लीन हो गया उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्यदेव प्रकट हुए गांव करण सूर्य देव को नमन किया और 2 अधिकारी की प्रेत योनि की मुक्ति पाने का बदला ने की प्रार्थना की तब सूर्यदेव बोले हे वास श्रीमद् भागवत कथा का वृतांत कराओ उसी से दूदू कार्य की मुक्ति होगी उसे मुक मिलेगा यह कह कर सूर्यदेव अंतर्ध्यान हो गए तब गोकर्ण ने ऋषि महात्माओं को बुलाकर श्रीमद्भागवत का सप्ताह यज्ञ आरंभ किया बहुत से नगर निवासी भी सप्ताह यज्ञ का रसपान करने आए अधिकारी भी आकर 178 वाले बांस के ऊपर बैठकर कथा सुनने लगा प्रथम दिन की कथा समाप्त होने के पश्चात संध्या को जब सभी लोग उठ कर अपने घरों को जाने लगे उसी समय उस बांस की 18 हट गई जिस पर दो-दो कार्य बैठा था इसी प्रकार 7 दिन में सातों गांठ चटक गई पूछ सकता पारायण को सुनने के पश्चात महा पापी दूधी करी को दिव्य रूप प्राप्त हो गया उसका रूप चतुर्भुज आरोपी श्री हरि विष्णु भगवान जैसे प्रेरित हो रहा था पितांबर पहने हुए वह गांव कर के पास आया और विनय पूर्वक बोला है भ्राता अपनी मूंछ पापी का उद्धार किया है श्रीमद् भागवत कथा के अलावा अन्य किसी भी ध्यान से मेरी मुक्ति ना हो पाती जो प्राणी इस कथा रूपी अमृत का रस का पान करेगा वह निश्चित रूप से भव्य रूप सागर से पार हो जाएगा उसी समय स्वर्ग में एक रत्ना जड़ित विद्यमान आया जिस जिस में सवार होकर दूदू कारी बैकुंठध दूदू कारी के स्वर्ग और रोहन के बाद गोकर्ण ने सूजी से पूछा है रिसीवर मेरा भाई पापी होकर भी श्रीमद् भागवत सप्ताह सुनकर बैकुंठ पद को प्राप्त हो गया इसमें कोई संदेह नहीं परंतु यह कथा हम सबने सुनी है और फिर तू अधिकारी ही क्यों उस अपूर्व सुख को प्राप्त बना इसका क्या कारण है तब वेद के गुरु ज्ञाता श्री सूत जी ने अपने मधुर स्वर से बोले ए गोकरण यह सच है कि यह धरती कर्मभूमि है यहां हर कोई का जन्म होता है और कर्म पूर्ति के लिए मनुष्य जब बालक के रूप में जन्म लेता है उसी समय से ऋण कर्ज का भार उस पर लग जाता है हमने मालूम है कि आप सभी के मन में ऋण का नाम सुनकर एक प्रकार की उत्सुकता होने लगी होगी कि कैसा रेन जब हमने कभी किसी से रिंग लिया ही नहीं तो रेड कैसा परंतु ऋण है यहां एक सत्य जिस मां ने 9 मार्च तक तुम्हें अपने उद्धार में रखा धरती पर हमें के पश्चात तुम्हारी मल मूत्र तक साफ करती रहे जब तक कि तुम स्वयं अपनी देखभाल करने लायक ना हो क्या यह ऋण नहीं है किशोरावस्था तक पिता ने तुम्हारा भरण पोषण किया क्या यह ऋण नहीं है जब तुम विवाह योग्य हो गए तो उसकी माता पिता ने तुम्हारा विवाह के लिए कुलीन परिवार की कन्या से कराया विवाह के पश्चात पत्नी का ऋण रूपी बार तुम पर आ गया तदेव पुत्र की प्राप्ति हुई अर्थात कर्म रूपी ऋण चक्र में मनुष्य रूप रुपी न्यू जूते जूते एक दिन काल वालिद होकर मृत्यु को प्राप्त करते हैं परंतु भागवत भक्ति की तरफ ध्यान नहीं दे पाता यही कलयुग की विशेषता है जबकि यदि थोड़ा सा भी निकाल कर सूर्यदर्शन धरती तीनो लोग के कारण श्री कृष्ण जी की भक्ति में ध्यान लगाए तो निश्चित रूप से मनुष्य आने-जाने के चक्र से मुक्त होकर को लोग को चला जाएगा किंतु थोड़ा सा भी समय निकाल पाना दुष्कर्म है इसलिए कि 24 घंटा कलयुग सिर पर सवार रहता है आप सभी लोग यही जानने के उत्सुक थे कि अधिकारी को अकेले क्यों मुक्ति प्राप्त हुई कथा सभी जन सुन रहे थे तो वह करण का कथा सुनने की भी कई विधि है यहां बैठे सभी जनमानस कथा अवश्य सुन रहे थे परंतु उसके मन में स्थिरता ना थी कोई कोई सोच रहा था कि इतनी आप तक मायम बहुत धन कमा चुका होता तो कोई अन्य किसी भगवान से वशीभूत होकर कुछ अन्य सोच रहा था किसी को पुत्र मोह सता रहा था तो किसी को अपना समय गांव आने का वेट करता रहा था इसलिए है विवरण का कथा सुनने के फल उसी को प्राप्त हुआ जो पूरी श्रद्धा भक्ति विश्वास के साथ तन्मय होकर सुनता रहा श्री तारण गढ़ मेला जीत होकर अपने सिर झुका लिए उन्हें अपने आप पर प्रयास जीत होने लगा कि हमने कथा ध्यान से क्यों नहीं सुनी किंतु उसके यह दुख ज्यादा दिन तक ना रहे श्रवण महीने में स्वयं को कुरान की श्रीमद्भागवत रूपी अमृत वर्षा पर श्रोताओं पर कि सब ने ध्यान मग्न होकर रसपान किया परिणाम स्वरूप स्वयं सुदर्शन धारी त्रिलोक को सुख देने वाले सुख सागर में अपनी दिव्य रूप में पार्षदों सहित प्रगट हुए धरती अपने को धन्य समझने लगी वरुण देव वायु देव में सुगंध भरकर प्रभु केतन को स्वयं स्पर्श किया अपना जीवन धन्य करने लगे उसी समय वहां उपस्थित पशु पक्षी जीव जंतु सभी को अपूर्व सुख की प्राप्ति हुई अनेकों वर्षों तक जब ध्यान पूजा पाठ और दान धर्म करने से भी मनुष्य लीलाधारी की अद्भुत छवि ना देख पाए था उसने भी उन्हें देखने का सौभाग्य पाकर अपने को धन्य कर लिया

TRANSLATE IN ENGLISH 

Shrimad Bhagwat Katha Chapter 5 Beginning



Deliverance of Dudu Kari from receiving the phantom vagina and listening to the week method by Gokarna

After listening to the appropriate story, Shri Sut ji became silent, all the sages and devas were waiting for Narad to speak again, but the list remained silent, then Narad ji said, O Munishwar, please listen to the next story, otherwise we all listen to the half-story. Just like this will hang in the balance, just as Maharishi Vishwamitra's tenacity is raising doubts of gold, Maharaja Trishul, who started returning back to the earth under the influence of Indradev, then Vishwamitra ji again tried to take him to heaven with his tapobal, Indra and In the war of Maharishi Vishwamitra, Trishul Chak was left hanging in the balance, said the list, I know Devarshi Narad that you are very wow that you cleverly learn from you, then Narad ji has been very requesting and said, Mahamuni, we have nothing in front of you. Lord God is giving you nectar, it is your infinite grace on us, please continue your discourse, then the list said, O sage Gaan, after the Brahmin's departure from the forest, the unrighteous Dudu Kari said while beating his mother, tell me the buried wealth, otherwise I will tell you I will take my life out on the same day Rudhauli said this Having saved my life, I will tell you tomorrow, Dhu Dhu Li saved her by taking the help of lies in time, but on the second day, considering that there is no such thing as wealth in the house, from where can I bring money? Thinking that I would give it to the officer, she went out of the house and went and died after falling into a well, then Gokarna did not consider it appropriate to stay there because he was very seventh-minded, then to go on pilgrimage, he considered this disorder appropriate. After the departure of two Karans, Dodo Kari started living alone in the house, then there was no bondage in front of him, he became completely poor and unrighteous, by stealing and cheating, he brought money and went to prostitute 1 day that prostitute thought that It steals and brings money, if it is ever caught, then I will also have to be punished with it, so thinking that it should be killed, killed Dudu Kari with burning wood and killed his body by digging a pitcher pit at the same place. Put in the womb of the earth, when neighbors asked that prostitute where the officer was, she said with the help of lies, she went abroad to do business That's why it is a well-known fact that the prostitute is never someone's own, the one who understands them comes in the category of a fool, where there is a bag of 20 in the stomach of nectar and salvation, after death, the soul of the officer starts wandering in an insatiable state. Received a phantom vagina, he started tormenting winter, heat, rain, hunger and thirst, after a few days, Karan came to know that Dudu's work was dead and the ritual was not done, then he went to the cow and donated it everywhere. In this way, after donating his pind in many pilgrimages, he came to his house and slept there at night, sometimes in the form of an elephant, sometimes a bull, a frog and sometimes a buffalo, saw the officer, so the village Karan asked him who are you, a ghost and a ghost. Or which of the demons is a creature of the vagina, the power of speaking in Dodo Kari was weakened, that's why he could not speak. Reaper spraying water, with the effect of which he became able to speak, then he has said That current, I am your brother Dodo Qari, Beti killed me and I do not get anything to eat and drink, I am still alive by drinking air, O brother, you save me in some way, then Gokarna said that the officer for your salvation I have done all the pilgrimages. I went and clothed your head, yet you did not get rid of this phantom vagina, Dudu work was helpless and said, being a sinner and a sinner, I will not be able to get the seven salvation post, due to being a sinner, I will not be able to get the seven salvation post By saying that I will get freedom from this indomitable phantom vagina, you have gone from there, when the people of the city came to meet the officer, after giving all the worthy things to everyone, asked him this gentlemen, my brother, because of his despicable deeds, asked him I am wandering, tell any proper way of his salvation, the pundits who came there said, Google, only the sun god can tell the answer to your question, so you go to him when after the departure of the pundits, Gokarna is absorbed in the worship of Sun God and contemplation. Pleased with his devotion, Suryadev appeared in the village Karan Sun. He bowed down to V and prayed for revenge for the liberation of the phantom vagina of the 2 officers, then Suryadev said, O Vas, please tell the story of Shrimad Bhagwat Katha, that would be the salvation of Dudu's work, he would get salvation, saying that Suryadev became intrigued, then Gokarna said After calling the sages and saints, started the week yajna of Shrimad Bhagwat, many residents of the city also came to drink the sagas of the week yagya, the officials also came and sat on the 178 bamboo and listened to the story. At the same time, 18 of that bamboo was removed on which two tasks were sitting, similarly in 7 days all the seven knots got cracked. Lord Hari Vishnu was getting inspired like he came to the village wearing Pitambar and humbly said brother has saved his mustache sinner from any meditation other than Shrimad Bhagwat Katha

The creature who would not be able to get rid of me, who would drink the juice of this nectar in the form of this story, would surely cross the ocean in a grand form, at the same time a gem-studded presence came in the heaven, in which the Dudu Kari Baikuntha Dudu Kari's heaven and Rohan After Gokarna has asked Suji, the receiver, my brother, despite being a sinner, has attained the position of Baikunth after listening to Shrimad Bhagwat week, there is no doubt about it, but we have all heard this story and then why did you become the officer, what was the reason for this Then Shri Sut ji, the guru of the Vedas, said with his melodious voice, Gokaran, it is true that this earth is the land of work, everyone is born here and for the fulfillment of karma, when a person is born as a child, the debt is from that time. The burden of debt falls on him, we know that after hearing the name of the loan, there must have been a kind of curiosity in your mind that when we have never taken a ring from anyone, then how is the red, but there is a debt here which is a truth. Mother kept you in her salvation till 9 March You are not able to take care of yourself, is it not a debt that the father took care of you till adolescence? The time of debt has come upon you, and you have received a son, that is, in the debt cycle of karma, new shoes and shoes in the form of a human being one day attain death, but the Bhagwat is unable to pay attention to devotion, this is the specialty of Kaliyuga, whereas If by taking out even a little bit of Suryadarshan Earth, three people meditate in the devotion of Shri Krishna ji, then surely man will be free from the cycle of coming and going and going to the people, but to take out even a little time is a misdemeanor because 24 Ghanta Kalyug is riding on the head, all of you were curious to know that why the officer got liberation alone, all the people were listening to the story, so there are many methods of listening to the story of Karan, all the people sitting here were definitely listening to the story. There was no stability in his mind, someone was thinking that till so much you may have earned a lot of money. If it had happened, someone else was thinking something else after being subdued by some god, someone was being tempted by the son, then someone was waiting for his time to come to the village, that's why the result of listening to the story of the description was received by the one who had full devotion. Continuing to listen to Shri Tarangarh fair with faith, bowing his head, he started winning efforts on himself that why we did not listen to the story carefully, but his sorrows did not last for long. On the audience on the rain of nectar that everyone meditated and drank, as a result, the earth appeared in its divine form in the ocean of happiness, giving happiness to the Sudarshan-dhari Trilok, the earth began to consider itself blessed, Varun Dev Vayu Dev, filled with fragrance, Lord Ketan. At the same time, all the animals, birds and animals present there got unparalleled happiness. blessed myself with the good fortune of

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ