श्रीमद् भागवत कथा सुखसागर अध्याय 5 आरंभ
नाराज जी वेदव्यास जी को हरी चरित्र पुराण लिखने की प्रेरणा देने व्यास जी की चिंता देखकर देवर्षि नारद बोले आप किसी गहरी चिंता में डूबे हुए लग रहे हैं आपने एक बैग से चार वेद बनाकर महाभारत एवं शस्त्र पुराण मनाल डाले फिर भी आत्मबोध ना हुआ यह सुनकर व्यास जी अत्यंत प्रसन्न हुए कि देवर्षि मेरे मन की बात जान गए और आपने चिंता का हाल करते हुए नारद जी से बोले यह देवर्षि आप दिन रात हरि के भजन में मस्त रहते हैं कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं मेरी चिंता दूर हो और मन को शांति मिले तब नारदजी बोले हे वेदव्यास जी जिस तरह आपने महाभारत और शस्त्र पुराणों की रचना करके मनुष्यों के सम्मुख दांता व्रत आदि का व्याख्यान प्रस्तुत किया उसी तरह का भी अत्यंत प्रभु की लीला का वर्णन करते हुए किसी पुराण की रचना कीजिए तभी आपके मन को शांति प्राप्त होगी अन्यथा आपका मन इसी भक्ति विचलित होता रहेगा प्रभु की लीला को छोड़कर दूसरे पुराणों को पढ़ने और सुनने की परिश्रम भी ज्यादा लगता है और थोड़ा सा फल प्राप्त होता है और मन भी स्थिर नहीं रहता जब की हरि कथा के श्रवण मात्र से मांग की सभी बाधाएं दूर होकर चिंता संतुष्ट हो जाता है जो लोग संसार में अनेक दुख भोग रहे होते हैं हरि कथा के श्रवण करने और पढ़ने से उन दुखों से मुक्ति पा लेते हैं इसलिए आप उस पुराण की रचना कीजिए जिसमें हरि कथा का वर्णन हो जिस तरह मनवांछित हुआ चलने से नौका अपने गंतव्य तक शीघ्र पहुंचती है ठीक उसी प्रकार हरि कथा रूपी अमृत का पान करके मनुष्य अति शीघ्र भवसागर के पार उतर जाता है जैसा सुख इंद्र वरुण एवं कुबेर आदि देवताओं का चिंतन करने से कभी नहीं प्राप्त होता है इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वे मन शुद्ध करके प्रभु श्रीहरि का ध्यान करे संसार में सब तरह से सुख-दुख पिछले जन्मों को प्राप्त होता है और पुनः उन्हें जन्म लेना पड़ता है यह सभी बातें आपने वेद और पुराणों में इस तरह लिख लिखे हैं कि मंदबद्धि वाले मनुष्य कदाचित उसे समझ नहीं सकते जैसे आपने पितरों का श्राद्ध कराना मां से लिखा है इसलिए मांस खाने वाले तुम्हारे वचनों को प्रणाम मानकर मांस भक्षण कर के यहां ना समझे कि व्यास जी का भी प्रयास माह से सुविधा और यस करने से है इस तरह की बात तपस्वी लोग ही समझ सकते हैं जिस तरह सरोवर में रहकर हंस दाना नहीं चूकते बल्कि मोती चुभते हैं और कहां अशुद्धियां जगह बैठ कर गंदगी खाता है अपनी कर्ज बोली के घमंड में अपनी पक्षी को कुछ नहीं समझता वह किसी को फूटी आंख भी नहीं सुहाता जबकि हम सबको प्रिय होता है ठीक उसी प्रकार हंस रूपी साधु पुरुष को हरि कथा सुनाना हितकारी लगता है जो पुराण प्रभु की कथा से रहित है वह उनको अच्छा नहीं लगता नारद जी उन्हें समझते हुए कहने लगे एक व्यास जी यही कारण है कि आपके मन को संतोष नहीं हुआ आप आपको यथाशीघ्र ऐसे पुराण की रचना करनी चाहिए जिसमें प्रभु की समस्त लीलाओं का वर्णन हो जिसमें पढ़कर मनुष्य सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाकर परम गति को प्राप्त हो हम स्वयं अपने पिछले जन्मों की कथा सुनाते हैं पूर्व जन्म में मैं एक दासी पुत्र था मेरी माता एक ब्राह्मण के घर कामकाज करती थी जहां नित्य प्रतिदिन साधू सन्यासियों का आना जाना रहता था मेरी माता साधु संतों की सेवा टहल करती थी मैं अभी बालक होने के कारण हर समय अपनी माता के साथ रहता था और वहां रहकर आठों पहर उनका दर्शन करता था जिस समय साधु लोग आपस में हरि कथा की चर्चा करते थे उस समय भी मैं उसके पास ही बैठा होता था मुझे अज्ञान बालक को हरि कथा बहुत प्रिय लगती है इसलिए बहुत चाव से मैं सुनता था साधु लोग भोजन के पश्चात जो कुछ जूठन के रूप में छोड़ देते थे उसको मैं बड़े प्रेम से खाता था जब साधु लोग बरसात बीतने पर जाने लगे तो मैं रोने लगा मेरी इच्छा हो रही थी कि मैं भी इनके साथ जाऊं मेरा प्रेम देखकर उन्होंने मुझे बालक पर अपनी असीम कृपा प्रदान करते हुए बोले हे पुत्र हम तुझसे एक मंत्र देते हैं उसी मंत्र को तू नित्य प्रतिदिन जाप करें ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र देखकर साधु लोग चले गए तब मैं साधुओं की आज्ञा मानकर श्री कृष्णा के चरणों का ध्यान करने लगा और मंत्र जपने से मेरी भीतर ज्ञान का अंकुर फूटने लगे जो मन में भावना जाग उठी कि 1 में जाकर हरि चरणों का ध्यान करो किंतु मेरी माता मुझसे बहुत स्नेह करती थी वह एक पल के लिए मुझे अपने से दूर करने को तैयार नहीं होती हरि कृपा अनंत है प्रभु मायाधर की माया से ब्राह्मण के लिए दूध दुआओं ने जा रही मेरी माता को राह में सर्प ने डस लिया और उसकी मृत्यु हो गई मैं यह जानकर अति प्रसन्न हुआ इसलिए कि सांसारिक माया मुंह से प्रभु ने मुझे छुटकारा आया है यह विचार कर मैं निवियन होकर एक प्रस्थान कर गया उसी बीच जब मैं 5 वर्ष का था तो उत्तर दिशा की ओर से और चल पड़ा नदी नाले पहाड़ आदि दुर्गम को पार करते हुए चला जा रहा था हरा में जंगली जानवर भी मुझे दिखलाई दिए किंतु का दीक्षित मात्र भी मुझे उनका डर ना लग मेरा ध्यान उस भक्तों की तरह परमेश्वर के चरणो में लगा था जिससे सोते जागते प्रभु ही दिखाई देते हो बहुत दूर जाने के बाद एक पीपल वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गया जो एक नदी के किनारे पर था और उस स्थान पर मनुष्यों का आवागमन भी ना था वहीं बैठकर श्री हरि के चरणों का मैं ध्यान करने लगा तब दिव्य ज्योति से मूर्त रूप में मुझे ऐसा दिखाई पड़ा जैसा एक मनुष्य जिसका मुख मंडल कोटि सूर्य से भी ज्यादा प्रकाशमान है चतुर्भुज रूप में शंख चक्र गदा और पद्म लिए हुए पीतांबर और जेन्यत माला धारण किए हुए सील पर मोर मुकुट कानों में कुंडल घुंघराले बाल और लंबी भुजा वाले मंद मंद मुस्कुराते हुए मेरे सामने आ खड़े हुए और मुंह धो कर मैं उन्हें निहारता ही रह गया जब वह रूप मेरे सामने से लुप्त हो गया तब मैं अत्यंत दिन हो कर रोने लगा उसी समय आकाशवाणी हुई तू चिंता छोड़ कर मेरी भजनों में अपना ध्यान लगा तेरे मन में प्रतीक उजागर करने के लिए मैंने एक बार तुझे दर्शन दिया दूसरे जन्म में पुनः मेरी दर्शन करेगा और मेरे अन्य भक्तों में तेरी गणना होगी मेरी कृपा से तू अपने पूर्व जन्म की कथा याद रहेगा
TRANSLATE IN ENGLISH
Shrimad Bhagwat Katha Sukhsagar Chapter 5 Beginning
Seeing the concern of Vyas ji inspiring Ved Vyas ji to write the green character Purana, Devarshi Narad said, you seem to be immersed in some deep concern, you made four Vedas from a bag and poured Mahabharata and Shastra Purana, yet you did not realize this. Vyas ji was very pleased that Devarshi came to know about my mind and while worrying, you said to Narad ji, this Goddess, you are busy in the hymns of Hari day and night, please suggest some such way by which I can get rid of my worries and my mind. To get peace, then Naradji said, O Vedavyas ji, just as you composed Mahabharata and Shastra Puranas and presented a lecture of Danta Vrat etc. in front of human beings, in the same way, compose a Purana describing the leela of the Supreme Lord, only then your mind You will get peace, otherwise your mind will continue to be distracted by this devotion, except for the Leela of the Lord, the effort of reading and listening to other Puranas is also more and little fruit is obtained and the mind also does not remain stable, when the demand from the mere hearing of Hari Katha that the worry is satisfied by removing all the obstacles People who are suffering many sorrows in the world, by listening and reading Hari Katha, they get rid of those sorrows, so you should compose a Purana in which Hari Katha is described, as desired, the boat will reach its destination soon. In the same way, after drinking nectar in the form of Hari Katha, a person very quickly descends across the ocean, as happiness is never attained by contemplating on gods like Indra, Varun and Kuber etc. Therefore, one should purify the mind and worship Lord Shri Hari. Meditate, in the world, happiness and sorrow are received in all the past lives and they have to be born again, you have written all these things in the Vedas and Puranas in such a way that the retarded people may not understand it like you did the Shradh of the ancestors. It is written from the mother, that's why those who eat meat, take your words as a salutation and eat meat and do not understand that Vyas ji's effort is also to facilitate and do this from the month, such a thing can be understood only by ascetic people, just like living in a lake. The swan does not miss the grain, but the pearl pricks and where the impurities sit in the place. In the pride of his debt quote, he does not consider his bird to be anything, he does not like anyone even with a broken eye, while we are all dear, in the same way, it is beneficial to tell the story of a swan to a saint who is devoid of the story of the Purana Prabhu. He does not like them, Narad ji understood them and started saying that one Vyasa ji, this is the reason why your mind is not satisfied, you should write such a Purana as soon as possible in which all the pastimes of the Lord are described, in which one can get freedom from worldly sufferings. Having attained the supreme speed, we ourselves narrate the story of our past lives. In the previous birth I was a maidservant's son. My mother used to work in the house of a Brahmin, where there used to be regular visits of sages and ascetics. My mother used to walk in the service of sages. I used to live with my mother all the time as I was a child and stayed there and used to see her at eight o'clock, when the sages used to discuss the Hari Katha amongst themselves, even at that time I used to sit next to her. Hari Katha is very dear to me, so I used to listen with great interest to the sages. After the meal, I used to eat with great love whatever was left in the form of leftovers, when the sages started leaving after the rain, I started crying, I was wishing that I should also go with them, seeing my love, they gave me their blessings on the child. Giving infinite grace, he said, son, we give a mantra to you, you should chant the same mantra every day, after seeing the mantra Om Namo Bhagwate Vasudevaya Namah, the saints left, then I obeyed the orders of the sadhus and started meditating on the feet of Shri Krishna and chanting the mantra The sprout of knowledge started sprouting within me, which aroused the feeling in my mind to go and meditate on Hari's feet, but my mother used to love me very much, she is not ready to take me away from her for a moment, Hari grace is infinite Lord My mother was bitten by a snake on her way to the Brahmin from Mayadhar's illusion and she died. One left in the meantime when I was 5 years old, then the river started from the north direction I was going to cross the inaccessible river, mountain etc. Wild animals were also visible to me in the green, but even I did not feel afraid of them, my attention was focused on the feet of God like those devotees, from which only the sleeping Lord is visible. After going a long distance, I sat down under a Peepal tree which was on the bank of a river and there was no movement of human beings at that place and sitting there I started meditating on the feet of Shri Hari, then I felt like this in a tangible form with divine light. Appeared like a man whose face is brighter than the sun, in a quadrilateral form, holding a conch shell, a mace and a padma, wearing a garland and a garland, a peacock, a crown, a coil in the ears, curly hair and a long arm. Standing in front and washing my face, I kept staring at them, when that form disappeared from me, then I started crying for a long time, at the same time, the Akashvani left worry and focused on my hymns, the symbol exposed in your mind to see you once
Diya will see me again in the second life and you will be counted among my other devotees, by my grace you will remember the story of your previous birth.
0 टिप्पणियाँ