श्रीमद् भागवत कथा सुखसागर अध्याय 3

श्रीमद् भागवत कथा सुखसागर अध्याय 3 आरंभ

सुख निधान करुणासागर श्री हरि के आने का अवतार का वर्णन प्रभु के असंख्य रूप हैं स्वयं आदि हैं स्वयं अनादि हैं वह स्वयं ही ब्रह्मा है योगेश्वर भी स्वयं है मुनीश्वर भी स्वयं है अतः हे ऋषि गार्ड निराकार प्रभु जगत में अवतार धारण कर मनुष्य का क्लेश मिटाने बारंबार एवं स्वय आए हैं सबसे पहले भी वही थे पर ले काल के मध्य से लेकर पहले होने तक भी वही रहे वह स्वयं आलौकिक होने वाले उस दीपक के समान है जिसमें तेल की आवश्यकता नहीं होती है जैसे स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित रहने वाले सूर्य सूत जी वहां उपस्थित ऋषि गार्ड के सम्मुख ज्ञान का भंडार खोलते हुए कहने लगे महाप्रलय के उपरांत यदि अनंत प्रभु की इच्छा हुई सृष्टि की रचना करने की तब अवतार लेकर शेषनाग की छाती पर प्रगट हुए प्रभु के उसी रूप को उनका विकराल रूप कहा जाता है उस समय उनके हजार आठ हजार नाक हजार हाथ हजार पैर और हजार सिर होते हैं उनकी नाभि से कमल पुष्प निकलता है और उस पुष्पक पर ब्रह्मा जी की उत्पत्ति होती है प्रभु के आदेश पर ब्रह्मा जी 14 लोगों की रचना करते हैं प्रथम अवतार में चार भाइयों सनक सनातन सनातन और मंच तत्व कुमार के रूप में अवतरित होकर पृथ्वी पर आए और ब्रह्मचारी रहे दूसरे अवतार में वारा का रूप लेकर प्रकट हुए और पृथ्वी को पाताल पुरी जाकर राक्षस की कैद से मुक्त कराएं लाए तीसरे अवतार में यस यस पुरुष के रूप में अवतार लेकर सब राजाओं महाराजाओं कोयल विधि बतलाई चौथे अवतार में श्रीहरि के हर गरीब का रूप धारण कर जिसमें शरीर आदमी का और सिर घोड़ा का धारण कर प्रगट हुए आपने इस अद्भुत अवतार में उन्होंने ब्रह्मा जी को वेद देवताओं का अध्ययन कराया पांचवा अवतार था नर नारायण का इसमें इस अवतार में सांसारिक जीवों को तक का मार्ग दिखाया छठ में अवतार में कपिल मुनि का रूप धारण करके अपनी माता को आसन योग की शिक्षा दी साथ में अवतार में दत्तात्रेय जी का जिसमें भक्तों पहलाद को वैध पढ़ाया आठवें अवतार में श्री कृष्ण आश्रम देवजी बनकर चित्र वेदी नामक इंद्र कन्या के गर्भ से प्रगट होकर जड़ चर्चा एवं उनके बेटे जयंत देव के मध्य से धर्म समूचे संसार में फैलाया नए अवतार में राजा पृथ्वी का जो वेदों के शरीर मंथन से हुआ है जिससे गांव रूपी पृथ्वी का देहांत दुआ किया और सब औषधियों जो अपने तन से के भीतर छुपाया था बाहर निकाल दिया दसवीं अवतार में माता से रूप धारण कर सप्त ऋषि समेत राजा सत्यव्रत को नौका पर बैठाकर ज्ञान के उपदेश देते हुए किनारे लगाएगी आर्मी कछुआ अवतार था जिसमें समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर टिकाया समुद्र मंथन में अमृत कलश लिए धनवंतरी प्रगट हुए या प्रभु का बर्मा अवतार था और तेल में अवतार में मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं और दानवों के बीच अमृत वितरण करने के लिए जा पहुंचे उनमें अवतार की अवतार की कथा अत्यंत निराली थी दे दो हिरण कश्यप अपने पुत्र हरि भक्त पहलाद कुमार ने ही वाला था उसी समय श्रीहरि नरसिंह का रूप धारण करके प्रकट हुआ और हिरण्यकश्यप को अपने पैन नाक पर हार से मारकर भक्त पहलाद की रक्षा की 15 में अवतार में वामन अवतार था जिसमें आपने पहने नाक पहाड़ों से मारकर भक्त पहलाद की रक्षा की 15 व अवतार वामन अवतार था जिसमें मात्र तीन पग धरती राजा बलि से दान स्वरूप मांगी और उस तीन पग में आकाश पाताल एवं मृत्यु लोक नाप लिए फिर भी धरती कम पड़ गई 16 मां हंस अवतार लेकर संत कुमार को ज्ञान का उपदेश देकर उनके घमंड को तोड़ा सदर में अवतार नारद जी के रूप में अवतार लेकर पंचामृत वेद का सृजन किया था में अवतार में परशुराम बनकर इस बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया और बीसव अवतार में पुरुषोत्तम राम बनकर देवी कौशल्या के गर्भ से प्रकट हुए और समुद्र का घमंड तोड़ कर आबकारी रावण को रितु धाम पहुंचाया सूची बोले हैं रिसीव 21 में अवतार में वेदव्यास बंद कर सभी वेदों का भाग करके 18 पुराण का सृजन किया महाभारत की रचना की 22 में श्री कृष्ण अवतार जिसमें मामा कंस का लिया और जरा धर का वध किया एवं अधर्मी राजाओं का हनन किया तीसरा अवतार बोध अवतार लेने का मूल कारण यह है कि द्वितीय ने अपने गुरु शुक्राचार्य से पूछा कि हे गुरुदेव इंद्र शासन पर सदा सर्वत्र देवता से राज्य करते हैं कोई एक उपाय कीजिए जिसमें इंद्रासन पर हमारा राज स्थापित हो जाए तब शुक्राचार्य बोले देवताओं के समान तुम भी यस करो तब शुक्राचार्य के आदेश पर राक्षसों ने या प्रारंभ कर दिया उन्होंने यस करता देख देवता घबरा गए भागकर श्रीहरि के पास जा पहुंचे और पूरी कथा सुनाया तभी श्री हरिनारायण देवताओं का दुख दूर करने के लिए बौद्ध अवतार का धारण कर शोभित का रूप बनाया महिला पूछेला कपड़ महिला कपड़ा पहन कर चोरी रस्सी हाथ में लेकर उसी स्थान पर जा पहुंचे जहां दे तो यस कर रहे थे उन्हें देख कर दे दो ने पूछा तुम्हारे हाथ में कौन सी वस्तु है बहुत ही मुस्कुरा कर बोले हम जहां बैठे हैं वह छोटे-छोटे बहुत से जीव होते हैं जो दबकर मर जाते हैं जो इस चोरी से झगड़ा कर बैठते हैं हम देवता ने पूछा आप के वस्त्र इतने मिले क्यों हैं उत्तर में बहुत जी बोले कपड़े में भी बहुत से जीव होते हैं जो धोने से मर जाते हैं यह सुन कर दे तो वहां से वशीभूत हो गया यस बंद कर दी आप मैं कहने लगे यस करने से जीव हिंसा होती है यस करना उचित नहीं है इससे तो पाप बढ़ेगा ऐसा करने से उनका धर्म बल जाता रहा और देवता प्रबल हो गए हर कली युग के अंत में चोर जो विश्व में अवतार हुआ उसका नाम कल की हुआ आपने सभी अवतारों में केवल कृष्ण अवतार में ही प्रभु आपने 24 कल कल कल आओ सहित अवतरित हुए बाकी अन्य सभी अवतार में उनकी कलाओं के कुछ अंश प्राप्त ही थे संसार में जितने भी जीवधारी हैं सब में उन्हें ब्रह्मा का हंस समाया हुआ है इसलिए कोई उसके अवतार की गणना नहीं कर सकता प्रभु अपनी माया से संसार का सृजन करते हैं परंतु माया की वश में नहीं होते इसलिए संसारी जीवो के दुख में दुखी होने से उन्हें दुख नहीं होता वही मनुष्य उन्हें पहचानता है जो हरि के भजन में लीन रहकर उन्हें पर भरोसा करता है श्रीमद्भागवत में वेदव्यास जिस सांसारिक जिओ को भवसागर से पार उतारने की विधि सहित व्याख्यान किया और अपने पुत्र सुखदेव जी को हरिद्वार में गंगा किनारे रिसीवर ब्रह्मणों के बीच बैठाकर पढ़ाया जिस समय वेदव्यास जी यह कथा सुखदेव जी को पढ़ा रहे थे उसी समय हम भी वहां थे अतः गुरु कृपा से हमको अमृत रस से भरी हुई संपूर्ण कथा याद हो गई जो आप सभी को सुनना रहे हो

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Shrimad Bhagwat Katha Sukhsagar Chapter 3 Beginning

Sukh Nidhan Karunasagar Description of the incarnation of the coming of Shri Hari, the Lord has innumerable forms, Himself is the beginning, Himself is eternal, He Himself is Brahma, Yogeshwar Himself is also the Munishvar Himself, so O sage guard, incarnate in the formless Lord's world to eradicate human suffering. He has come again and again and again, he was the same in the beginning, but he remained the same from the middle of time to the first, he himself is like a supernatural lamp in which oil is not needed, like the sun, which is illuminated by its own light. Opening the store of knowledge in front of the sage present there, he started saying that after the great catastrophe, if the infinite Lord desired to create the universe, then the same form of the Lord who appeared on the chest of Sheshnag by taking an incarnation is called his formidable form at that time. He has thousand eight thousand nose, thousand hands, thousand feet and thousand heads, lotus flower emerges from his navel and Brahma ji is born on that flower, on the orders of the Lord, Brahma ji creates 14 people in the first incarnation, four brothers Sanak Sanatan Earth incarnating in the form of Sanatan and Manch Tattva Kumar But came and remained celibate, appeared in the form of Vara in the second incarnation and freed the earth from the captivity of the demon by going to Patal Puri. In the third incarnation, in the form of a Yes, Yas Purush, all the kings Maharajas told the cuckoo method in the fourth incarnation. By taking the form of a poor person, in which the body appeared as a man and his head as a horse, in this wonderful incarnation, he made Brahma ji study the Vedas, the fifth incarnation was that of Nar Narayan, in this incarnation he showed the way to the worldly beings in Chhath. Taking the form of Kapil Muni in the incarnation, taught Asana Yoga to his mother, along with Dattatreya ji in the incarnation, in which the devotees taught Pahlada as valid, in the eighth incarnation, Shri Krishna Ashram Devji appeared from the womb of a girl named Chitra Vedi. From the middle of his son Jayant Dev, the religion spread in the whole world in the new incarnation of King Prithvi, who was born by churning the body of the Vedas, who prayed for the death of the village-like earth and took out all the medicines which were hidden from his body in the tenth incarnation. I took the form of mother and the seven sages Including King Satyavrat sitting on a boat and preaching knowledge, the army was a tortoise incarnation, in which at the time of churning of the ocean, the Mandarachal mountain rested on its back, Dhanvantari appeared with the nectar urn in the ocean churning or was the Burma incarnation of the Lord and in the incarnation of oil. Taking the form of Mohini, went to distribute nectar among the gods and demons. And saved the devotee Pahlada by killing Hiranyakashyap with a necklace on his pan nose. Asked and measured the sky, Hades and death world in those three steps, yet the earth fell short, 16 mother swan incarnated and broke his pride by preaching knowledge to Sant Kumar and created Panchamrit Veda by taking incarnation in the form of Narad ji in Sadar. In tha incarnation as Parashuram, this time the earth was Kshatriya. He was disenchanted and appeared from the womb of Goddess Kaushalya in the form of Purushottam Ram in the twenty-something avatar and broke the pride of the sea and took the excise Ravana to Ritu Dham. Shri Krishna incarnation in 22 of the composition of the Mahabharata, in which Mama took Kansa and killed Zara Dhar and killed the unrighteous kings. Always rule everywhere with the gods, take any one remedy in which our rule is established over Indrasan, then Shukracharya said, do this like the gods, then on the orders of Shukracharya, the demons started doing this or they were scared to see that the gods ran away to Srihari. Arrived near and narrated the whole story, only then Shri Harinarayan took the form of a Buddhist avatar to remove the misery of the deities and made the form of Shobhit. Seeing them give me asked you Ray smiled very much and said where we are sitting, there are many small creatures who die by being suppressed, who fight with this theft, we the deity asked why are your clothes so found Answer I said a lot that there are many creatures in clothes which die by washing, after hearing this, then it became subdued from there, you stopped yes, I started saying yes, life is violence, yes it is not appropriate to do so. By doing this, their religion continued to grow stronger and the deities became stronger. At the end of every Kali Yuga, the thief who incarnated in the world was named yesterday. In all the other incarnations, some parts of his arts were received, all the living beings in the world have the swan of Brahma in them, so no one can calculate his incarnation. They are not under control, therefore they do not feel sad because of being unhappy in the misery of the worldly beings. 

Recognizes who trusts Hari by being absorbed in the hymns of Hari. We were teaching this story to Sukhdev ji at the same time, so by the grace of Guru, we remembered the whole story full of nectar juice, which you all have been listening to.

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