सुखदेव जी की वीर भक्ति एवं वन के प्रार्थना उपस्थित ऋषि-मुनियों की अभिलाषा जानकर व्यास जी के प्रसन्नत की सीमा न रही अत्यंत ही हर्षित होकर हुए उनसे प्रेम पूर्वक बोले हे रिसीवड जब सूत जी आपने प्रवचन सुना रहे थे उसी समय चौकन आदि ऋषि उपस्थित थे सूजी ऋषि समूह से विनम्र संबोधन कर सहित बोले हे ऋषि गाने अब मैं आप सब को लीलाधर श्री कृष्ण मुरारी की कथा सुनाता हूं आप सब ध्यान मग्न होकर सुनिए सुजीत कहने लगे जिस समय महात्मा सुखदेव जी बाल्यकाल में यज्ञोपवीत संस्कार से पहले संसार रूपी माया को त्याग कर घर परिवार को त्याग तपस्या कर के लिए वन को चले दिए उस समय सुखदेव जी के पिता श्री वेदव्यास ने अपने पुत्र की वीरान गति देखी वेदव्यास जी स्वयं को रोक ना सके और पुत्र मो से अभिभूत होकर सुखदेव जी के पीछे दौड़ पड़े एवं पुराने लगे हे वात्सल्य तुम इस तरह हम लोगों को छोड़कर कहां के लिए प्रस्थान कर रहे हो कुछ पल के लिए ठहर जाओ और हमारी बात सुन लो किंतु सुखदेव जी ने रुके वही सांसारिक मोह माया का बंधन तोड़ चुके थे मायाजल से उन्हें घोर विराम घोषित हो गई थी अपने पिता श्री वेदव्यास जी को उत्तर देने के लिए वह भी नहीं रुके और निरंतर गति से आगे कदम बढ़ाते रहें और मन में अति गंभीर विचार करते रहे वहां विचार उनका अपने पिताश्री के प्रति था जो वृद्धावस्था प्राप्त होने के फलस्वरूप भी सांसारिक माया रुपी जाल में उलझे पड़े थे सुखदेव जी पूर्ण रूप से चुप हुए मनन करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे और वेद व्यास जी के प्रश्नों का उत्तर 1 वृक्षों ने इस प्रकार दिया है ऋषि गण यह संसार गहरी निंद्रा में दिखाई देने वाली सुंदर स्वप्न की भांति है जो स्वप्ना देखते समय अति प्रिय लगता है किंतु निंदा समाप्त होते ही स्वप्न भंग हो जाता है ठीक उसी प्रकार जीवन एक स्वप्न है जो मृत्यु प्राप्त होने होते ही छिन्न-भिन्न हो जाती है मानव जी पंच तत्वों से मिलकर बनी सुंदरता का या शरीर को अपना कह कर आनंदित होता है वहां का या तो ना स्वर है यहां कोई किसी का पता नहीं कोई किसी का पुत्र नहीं यदि आप अपना जाना जाना ही है तो आत्मा को जानो आत्मा की अजर और अमर है उसकी कभी मृत्यु नहीं होती अतः हे मुनिवर अब आप शांत चिंतित होकर पुत्र शोक किया कर घर चले जाओ इतना कह कर वृक्ष चुप हो गया परंतु वेदव्यास जी अपने पुत्र के पीछे चलते ही गए कुछ दूर चलने पर एक सुंदर स्वक्षा सरोवर दिखाई दिया जहां देव ऋषि यों नग्न होकर स्नान कर रहे थे उन्हें इस अवस्था में देखकर भी श्री सुखदेव जी आगे आगे चलते ही गए किंतु देव ऋषि यों ने उन्हें देखकर भी किसी प्रकार का पर्दा ना किया परंतु थोड़ी देर बाद जब व्यास जी पधारे तो वही स्त्री उन्हें देखकर अपने अपने तन ढकने लगे यह देखकर वेदव्यास जी बोले हे देव गणों मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मेरे तरुण पुत्र के आगमन पर तो आपने पर्दा नहीं किया किंतु मेरे आने पर आप सभी ने पर्दा कर लिया जबकि मैं अति वृद्ध हूं इसका रहस्य हमें बतलाए प्रश्न सुनकर स्त्रियां समवेत स्वर में बोली आपके पुत्र श्री सुखदेव जी ने ज्ञानी परमहंस हैं वह स्त्री पुरुष में भेद नहीं समझते किंतु आप स्त्री पुरुष के भेद को भलीभांति समझते हैं इस कारण हम सभी आपको आता हुआ देखकर अपने अपने अंगों को ढकने लगे उन स्त्रियों के वचन सुनकर लज्जा का अनुभव करते हुए वेदव्यास जी आपने आश्रम के लिए वापस लौट गए जहां को कुछ पल विश्राम प्रदान करने के लिए श्री सूत जी चुप हुए तब व्यक्ति ऋषि यों ने पूछा है प्रभु आप श्री सुखदेव की इतनी प्रसन्न क्यों कर रहे हो कृपया कारण सहित विस्तार में बताएं श्री सूत जी ऋषि यों की वाणी सुनकर मुस्कुराए बिना ना रह सके उसकी शंकाओं का समाधान करने हेतु पुनः बोले हे रिसीवड भाव रूपी अर्थात गहरे सागर से पार उतरने वाले इस कथा को संसार मृत्यु लोक से तात्पर्य रूपी जल में विस्तृत करने वाले श्री सुखदेव जी की सामर्थ सम्मान के योग्य है अतः हुए ऋषि यों में महर्षि एवं गुरु के भी गुरु आप लोग किस प्रकार के संघ क रूपी कीड़ा को अपने मन मस्तिक में स्थान ना पाने दें इस कथा को सुनने से जो श्री सुखदेव जी ने सुनाया था जीव सांसारिक मोह माया से विचलित प्राप्त करें ज्ञानी होकर मोक्ष पद को प्राप्त होता है इसलिए सब मनुष्य को एकाग्र चित्त होकर भागवत कथा को सुनाना चाहिए और प्रभु का ध्यान करना चाहिए प्रभु का ध्यान करने से मन का मैल धुल जाता है और श्री हरि की निर्मल भक्ति प्राप्त हो जाती है प्रभु की कृपा से ही भगवान मनुष्य सत्संग का लाभ उठाते हैं भगवान भजन एवं श्री भगवत कथा सुनने बिना हृदय में पवित्रता का व्यास नहीं होता मन शुद्धीकरण नहीं हो पाता जिस तरह मनुष्य के तन में हमेशा हमेशा से तीन प्रवृतियां निवास करती चली आई है राशि तामसी एवं साध्वी यह तीनों प्रवृतियां देव पूजा के नाम से जाने जाते हैं राशि को दुआ तामसी को काट एवं तस्वीर को अग्नि की उपासना ज्ञानी ऋषि-मुनियों ने प्रदान की है किंतु सर्वती विधि से पूजा करने कराने ऋषि यों ने श्रेष्ठ माना है क्योंकि अग्नि के स्पर्श मात्र से ही वायु और अन्य वस्तुओ पूर्ण शुद्ध हो हो जाती है और शुद्ध वस्तु सर्वस्व पूजा अर्चना के योग्य होती है और सविस्तर विधियों से पूर्ण रूप से प्रभु के चरणों में समर्पित होकर जो मनुष्य पूजा करता है वह आवागमन रूपी चक्र से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त होता है
Knowing the valorous devotion of Sukhdev ji and the wishes of the sages present in the forest, there was no limit to the happiness of Vyas ji, being very happy, he said lovingly to him, O recipient, when Sut ji was delivering your discourse, at the same time the sages were present. With a humble address to the Suji Rishi group, he said, sage songs, now I narrate the story of Leeladhar Shri Krishna Murari to all of you, listen to all of you meditatively and listen to Sujit, when Mahatma Sukhdev ji renounced the world of Maya before the sacrificial ceremony in childhood. After leaving the family and leaving the family to do penance, at that time Sukhdev ji's father Shri Ved Vyas saw the deserted pace of his son, Ved Vyas ji could not stop himself and being overwhelmed by the son Mo, ran after Sukhdev ji and looked old. O Vatsalya, where are you leaving us like this, stop for a moment and listen to us, but Sukhdev ji stopped, he had broken the bond of worldly attachment, Maya had declared him a severe break. He also did not stop to answer his father Shri Ved Vyas ji. He continued to move forward at a constant pace and kept thinking very seriously in his mind, there he thought about his father, who was entangled in the web of worldly illusion even after attaining old age, Sukhdev ji was completely silent while contemplating. Were going ahead and the trees have answered the questions of Ved Vyas ji in this way, the sage Gana, this world is like a beautiful dream seen in deep sleep, which looks very dear while dreaming, but as soon as the condemnation ends, the dream is broken. It happens, in the same way life is a dream which disintegrates as soon as death is attained. Do not know that no one is the son of anyone, if you have to know yourself, then know the soul, the soul is immortal and immortal, it never dies, so, O sage, now you calmly worried and mourn your son and go home after saying this, the tree is silent. It happened but Ved Vyas ji went after his son and after walking some distance got a beautiful voice. The sage appeared where the sages were bathing naked like this, even after seeing them in this state, Shri Sukhdev ji went ahead, but the sages did not do any kind of curtain even after seeing them, but after a while, when Vyas ji came So seeing that the same woman started covering her own body, seeing them, Ved Vyas ji said, O God, I am surprised that you did not cover the arrival of my young son, but when I came, you all covered it while I am very old. After listening to the question telling us the secret of this, the women said in unison, your son Shri Sukhdev ji is a knowledgeable Paramhansa, he does not understand the difference between man and woman, but you understand the difference between man and woman, that is why we all see you coming and cover our own parts. Feeling ashamed after hearing the words of those women, Ved Vyas ji returned to the ashram, where Shri Sut ji was silent to provide some rest for a while, then the person sage has asked why Lord, why should you please Shri Sukhdev so much. Please explain in detail with reasons Mr. Su To solve his doubts, he could not live without smiling after hearing the voice of the sage, he said again, the power of Shri Sukhdev ji, who spread this story in the form of receiver, i.e. crossing the deep ocean, into the water of the world of death. It is worthy of respect, therefore, among the sages, what kind of sage and guru's guru should you not let the worm of the form of union get a place in your mind and head, by listening to this story which Shri Sukhdev ji had narrated, the souls were freed from worldly fascination. Get distracted, by being knowledgeable, salvation is attained, therefore all human beings should recite the Bhagwat story with a concentrated mind and meditate on the Lord. It is only by the grace of God that human beings take advantage of satsang, without listening to God's hymns and Shri Bhagwat Katha, there is no diameter of purity in the heart, the mind cannot be purified, just as three tendencies have always been residing in the human body. And Sadhvi, these three tendencies are in the name of Dev Puja. It is known that the worship of fire has been provided by the wise sages and sages to worship the zodiac, but the sages have considered it best to worship in the Sarvati method, because the air and other things are completely pure by the mere touch of fire. And the pure object is worthy of worship at all, and the person who worships by being completely devoted to the feet of the Lord by elaborate methods, gets freed from the cycle of movement and attains the supreme position.
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